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खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...

ओपन बुक्स ऑनलाइन के सभी सदस्यों को प्रणाम, बहुत दिनों से मेरे मन मे एक विचार आ रहा था कि एक ऐसा फोरम भी होना चाहिये जिसमे हम लोग अपने सदस्यों की ख़ुशी और गम को नजदीक से महसूस कर सके, इसी बात को ध्यान मे रखकर यह फोरम प्रारंभ किया जा रहा है, जिसमे सदस्य गण एक दूसरे के सुख और दुःख की बातो को यहाँ लिख सकते है और एक दूसरे के सुख दुःख मे शामिल हो सकते है |

धन्यवाद सहित
आप सब का अपना
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आ. प्रतापगढ़ में इसे चोटहिया जलेबी के नाम से जाना जाता है.

सादर

भाई गणेश बाग़ीजी, आज ही बलिया से वापस इलाहाबाद ’चहुँपा’ हूँ. गुड़ही ’जबेली’ का कहाँ कोई जवाब है ! बरबस जीभ नलका हुई जाती है.. :-))
वैसे बलिया के पूरे क्षेत्र में सवेरे-सवेरे खूब घना कुहरा हो रहा है. सो फुटेहरी-चोखा का मौसम निकहा जोर पर है.  :-))

अगर इलाहबाद "चोहुँपे" हैं तो "जबेली" ही तो मिलेगी हुज़ूर !!! :) 

हा हा हा...
आदरणीय योगराजभाईजी,
ईहे त भोजपुरिया लकम है, साहिब.. जे उलटे बँसुरिये को बाँस बना देता है..
हा हा हा हा....

काहे करते हो हो-हल्ला ! योगी कहता है ये लल्ला
अपनी खातिर यही मिठाई। बागी ने ठोकी चौपाई 

बागी खायें लिट्टी-चोखा । मगर ’जबेली’ लाये नोखा ॥
तेलही-गुड़ही चिकट 'जबेली' । मुँह-मिट्ठा कर मस्ती खेली ॥
चौपाई की धार निराली । योगी गायें दे दे ताली ॥
अपनो के दम दिल जीता है । बहुत मुबारक दिन बीता है ॥

चहुंपे सौरभ छकें जबेली। खूब गणेशी की अठखेली
सबको बाँटी गुड़हि मिठाई। खाली थाली मुझे थमाई      

रसगुल्ला तो खुद ही खाया, तकते रहे न हमें बुलाया,
आज न देंगे गुड़ही मिठाई, मिल खायेंगे दोनों भाई।

खूब खिलायें हमें गनेसी । जनमदिवस पर गुड़ही देसी ॥
सब मिल-बाँटें सब मिल खायें । शुभ-शुभ बोलें शुभ-शुभ पायें ॥
:-))

सौरभ जी, आपके हिस्से की जबेली तो योगराज भाई ने खा ली...अउर आप टापते रह गये...:)

छन्न पकैया छन्न पकैया, कथनी और कहानी.
योगी चट कर डाले गुल्ले, शन्नो कहें जबानी..

छन्न पकैया छन्न पकैया, कहें बात ना मन्दी
दिल को भा जाती शन्नो की, बाल सुलभ तुकबंदी

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