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सच्चे देशभक्त कहीं न कहीं समझते हैं कि अपने समाज के बच्चों को बचाने हेतु स्वयं की कुर्बानी कुफ़्र नहीं है बल्कि अल्लाह का हुक्म भी है| "अल्लाह हूँ अकबर" का नारा भी इसे ही परिभाषित कर रहा है| सादर बधाई आदरणीय पंकज जी सर इस रचना के लिये|
बहुत बढिया कथा बनी है आ. पंकज जी . सादर
भई क्या बात है भाई पंकज जोशी जी, गज़ब की लघुकथा हुई है - वाह वाह वाह !!! मुजाहिद शब्द की सही परिभाषा उभर कर सामने आई है। रचना की बुनावट और कसावट देखकर रूह बाग़ बाग़ हो गई। दिल से बधाई दे रहा हूँ, स्वीकार करें।
आदरणीय पंकज जोशी जी बहुत शानदार लघुकथा बनी है इंसानियत एक आतंकवादी के दिल में भी जाग सकती और वो इसके लिए अपनी जान भी दे सकता है। बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय पंकज जोशी जी हार्दिक बधाई,आपकी लघुकथा ने देश में फ़ैले हुए आतंकवाद और जातिवाद के मसीयाहों के काले कारनामों का कच्चा चिट्ठा बेहद शानदार तरिके से परिभाषित किया है!
आतंकवादी इस तरह सोचने लगें तो क्या ही अच्छा हो , सुन्दर लघुकथा आ. पंकज जी। बधाई स्वीकार करें।
मानवीयता ऐसा गुण है कब कहा जग जाये कह नही सकते मगर इसका जागना भर ही नए अध्याय का आरम्भ हो जाता है.. भावुक कथा के लिए बहुत बधाई पंकज जी..
यदि एक गुनहगार का जमीर जाग जाए तो वो हजार गुनहगारों पर हावी हो जाता है जमीर इंसान के अन्दर छुपे राक्षस को ध्वस्त कर देता है |बहुत अच्छी लगी ये लघु कथा |हार्दिक बधाई आ० पंकज जोशी जी |
आदरणीय पंंकज जोशीजी,
प्रस्तुत हुई लघुकथा जिस प्रवाह में प्रारम्भ होती है उसी में समाप्त हो जाती है और फिर जैसा वैक्यूम बनता है वह हर पाठक को सोचने केलिए अवसर की तरह तारी हो जाता है. जिस गन्दी सोच के तहत एक वर्ग सारा कुछ करता जा रहा है वह किसी संवेदनशील सोच की किसी परिधि में नहीं आता. दुःख यही है.
आपकी इस लघुकथा के विन्यास और कथ्य पर हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ
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