For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-49 (विषय प्रेरणा)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-49 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-49
"विषय: "प्रेरणा" 
अवधि : 29-04-2019  से 30-04-2019 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 6725

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जनाब आसिफ साहिब, प्रदत्त विषय पर लघुकथा की अच्छी कोशिश की है, मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l शहज़ाद उस्मानी साहिब के मशवरे पर ग़ौर कीजियेगा I 

मोहतरमा तस्दीक साहब आपकी तवज्जो और अपनेपन का बहुत शुक्रिया मोहतरम।

आदरणीय आसिफ साहब ।प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई ।

आदरणीय कनक जी बहुत बहुत धन्यवाद आपकी तवज्जो के लिए सादर।

वाह वाह बहुत ख़ूब मुबारकबाद जनाब आसिफ़ ज़ैदी साहब ख़ूबसूरत लघुकथा हुई है  l

बहुत सुन्दर व भावावेश रचना के लिए हार्दिक बधाई। कहीं-कहीं नाटकियता  का समावेश ज्यादा हो गया है बाकी की रचना बहुत बढ़िया है । नाटक में दिए गए निर्देश  लघुकथा में उचित नहीं होते हैं।

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी के द्वारा आपकी रचना को बहुत ही शानदार ढंग से प्रस्तुत किया गया है ।हार्दिक बधाई इस शानदार रचना के लिए।

हार्दिक बधाई आदरणीय आसिफ़ ज़ैदी साहब जी।बेहतरीन लघुकथा। समाज की एक ज्वल्लंत समस्या पर उम्दा लघुकथा।

बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएःआ आदरणीय आसिफ सरजी। 

प्रतिध्वनि


"आपके पास हमारा मोबाइल नंबर नहीं है क्या? बालकनी से हमारा नाम पुकार के मत बुलाया करो साहब! मेमसाब को अच्छा नहीं लगता!"

"तुम इतने दिनों से नहीं आ रहीं थीं। देखो, पूरा घर कैसा गंदा पड़ा है!"

"मेमसाब ने मना किया था। कह गईं थीं कि दस दिन बाद मायके से लौटूंगी, तभी आना!" फ़ुर्ती से कमरों में झाड़ू-पोंछा करती हुई मीरा ने अपना पल्लू समेट कर कमर ढांकते हुए कहा।

"सुना है तुम चाय बढ़िया बना लेती हो!" साहब के मुंह से यह सुनकर जवाब दिये बग़ैर मीरा ने चाय बनाई और साहब को बिस्किट्स के साथ परोस कर जाने लगी।

तभी खट्ट की आवाज़ के साथ ट्रे ज़मीन पर गिर जाने पर पूरी चाय फ़र्श पर फैल गई। मीरा समझ गई कि ऐसा जानबूझकर किया गया है।

"सफ़ाई बाद में करना! पहले यह बताओ, जब तुम इतनी पढ़ी-लिखी हो कि किसी स्कूल या दफ़्तर में काम कर सकती हो, तो यूं घरों में काम क्यूं करती हो? मेरे दफ़्तर में करना चाहोगी?"

"किसने कहा कि मैं पढ़ी-लिखी हूँ! पांचवीं पास हूं, बस! ...और हमारे हसबैंड घरों में ही काम कराना पसंद करते हैं! दफ़्तर वालों पे उन्हें भरोसा नहीं!"

"तो तुम इतनी अच्छी भाषा कैसे बोल लेती हो? पढ़े-लिखों की तरह सलीके से रह लेती हो और काम भी वैसा ही कर लेती हो!"

"साहब, अच्छी बातें सीखने के लिए स्कूल जाना ज़रूरी नहीं! अच्छे घरों में काम करके सब कुछ सीख लिया हमने! पड़ोस वाले हमें बहिन जैसा मानते हैं। उनके यहां बच्चे नहीं पैदा हुए, तो क्या! बहुत सुखी हैं दोनों! हम अपने बच्चे भी उन्हीं के यहां अक्सर छोड़ आते हैं!" लगातार बोलते हुए मीरा बोली, "सारे सलीके उन दोनों मियां-बीवी से सीखे हैं हमने, साहब!"

" ... और हमारे यहां से?"

"कुछ न कुछ अच्छाई तो हर घर में मिलती है न! साहब, बुरा मत मानना! आपके पास सब कुछ है, लेकिन वैसा सुख नहीं! ...आप भी पड़ोस वाले साहब जैसे बन जाओ! वाइफ के साथ घर के काम भी करवाया करो, उन्हें समय दिया करो!" फ़र्श फ़ुर्ती से साफ़ करते हुए मीरा ने कहा, "हम ग़रीब भले हैं, लेकिन सुखी हैं! हमारा आदमी हमारा बहुत ख़्याल रखता है, साहब!"

फ़िर वह चली गई। साहब बालकनी से उसे देखते रहे। उसके शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे।


(मौलिक व अप्रकाशित)

बहुत बहुत मुबारकबाद, बहुत बढ़िया, प्रदत्त विषय पर मोहतरम ।

आदाब। मेरी प्रविष्टि पटल पर समय देकर पहली टिप्पणी द्वारा मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद जनाब आसिफ़ ज़ैदी साहिब।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं टंकण त्रुटि…"
1 hour ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169
"अधूरे ख्वाब (दोहा अष्टक) -------------------------------- रहें अधूरे ख्वाब क्यों, उन्नत अब…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169
"निर्धन या धनवान हो, इच्छा सबकी अनंत है | जब तक साँसें चल रहीं, होता इसका न अंत है||   हरदिन…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छी कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई।  दुर्वयस्न को दुर्व्यसन…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मार्गशीर्ष (दोहा अष्टक)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर रोला छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मतभेद
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मार्गशीर्ष (दोहा अष्टक)

कहते गीता श्लोक में, स्वयं कृष्ण भगवान।मार्गशीर्ष हूँ मास मैं, सबसे उत्तम जान।1।ब्रह्मसरोवर तीर पर,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service