परम आत्मीय स्वजन,
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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 37 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. इस बार का तरही मिसरा मशहूर शायर जनाब अज्म शाकिरी की बहुत ही मकबूल गज़ल से लिया गया है. पेश है मिसरा-ए-तरह...
"तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ "
ते1री2 या2 दों2 / से1 दिल2 बह2 ला2 / र1 हा2 हूँ2
1222 1222 122
मुफाईलुन मुफाईलुन फ़ऊलुन
(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसद्दस महजूफ)
मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 जुलाई दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 29 जुलाई दिन सोमवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
अति आवश्यक सूचना :-
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मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है:
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी, बढ़िया गज़ल के लिए बधाइयाँ.............
जवानी खो दी यूँ ही सारी मैंने
अभी जाकर संभलता जा रहा हूँ......................बेहतरीन................
आयोजन में मेरी विलंबित उपस्थिति
तुम्हें मैं स्वर्ण मृग दिखता रहा हूँ
मगर मैं सिर्फ़ इक धोखा रहा हूँ।
सज़ा-ए-इश्क की तन्हाइयों में
"तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ।
तेरे ख़त की इबारत को समझकर
तेरे चेहरे को पढ़ने आ रहा हूँ।
कबीरा आप कहलें या कि नीरो
मैं घर को फूँक नग़्मे गा रहा हूँ।
नसीबा था हवा के साथ उड़ना
खि़लाफ़त में सदा उड़ता रहा हूँ।
नयन के द्वार पर ठहरो सपन तुम
अभी इक ज़ुल्फ़ मैं सुलझा रहा हूँ।
बहारों में लदा हूँ जब फ़लों से
मेरी आदत है मैं झुकता रहा हूँ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीय तिलक जी क्या मतला इस ग़ज़ल का हिस्सा नहीं है?
भयंकर भूल बेख़याली की। ठीक कर दिया है।
नयन के द्वार पर ठहरो सपन तुम
अभी इक ज़ुल्फ़ मैं सुलझा रहा हूँ। वाह क्या कहने !!!
बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय तिलक राज जी
हार्दिक बधाइयाँ !!!
बहुत खूब तिलक जी, अच्छे अश’आर हैं। दाद कुबूल कीजिए
नयन के द्वार पर ठहरो सपन तुम
अभी इक ज़ुल्फ़ मैं सुलझा रहा हूँ। ,,, बहुत खूब ख्याल
बधाई लीजिये आदरणीय तिलकराज जी!
वाह वाह ! आदरणीय तिलक राज जी | बहुत उम्दा गजल | मतले का शेर बहद पसंद आया
तुम्हें मैं स्वर्ण मृग दिखता रहा हूँ
मगर मैं सिर्फ़ इक धोखा रहा हूँ।---- बहुत खूब
बहारों में लदा हूँ जब फ़लों से
मेरी आदत है मैं झुकता रहा हूँ।----- ये तो आपकी महानता की नुमाइंदगी करता शेर है | वाह वाह क्या बात है
बहुत बहुत बधाई
बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय तिलक राज जी, दाद कुबूल कीजिये !!
आदरणीय आयोजन में जान डाल दी आपने! लाजवाब! आपको हार्दिक बधाई!
नयन के द्वार पर ठहरो सपन तुम
अभी इक ज़ुल्फ़ मैं सुलझा रहा हूँ।
बहारों में लदा हूँ जब फ़लों से
मेरी आदत है मैं झुकता रहा हूँ।
तेरे ख़त की इबारत को समझकर
तेरे चेहरे को पढ़ने आ रहा हूँ।/////// वाह वाह क्या कहने आदरणीय //बहुत ही सुन्दर जय हो
तुम्हें मैं स्वर्ण मृग दिखता रहा हूँ
मगर मैं सिर्फ़ इक धोखा रहा हूँ।..................................waaaaaaaaaaaaah naman.........kya shaandaar matla hua hai
सज़ा-ए-इश्क की तन्हाइयों में
"तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ।.........................lajabaab girah....waaaaaaah
तेरे ख़त की इबारत को समझकर
तेरे चेहरे को पढ़ने आ रहा हूँ।..........................waaaaaaah
कबीरा आप कहलें या कि नीरो
मैं घर को फूँक नग़्मे गा रहा हूँ।
..........................................................gazab ka sher ho gya zindabaad
नसीबा था हवा के साथ उड़ना
खि़लाफ़त में सदा उड़ता रहा हूँ।.............
नयन के द्वार पर ठहरो सपन तुम
अभी इक ज़ुल्फ़ मैं सुलझा रहा हूँ।....................aaaaaaaaaaah.........kya baat hai.............behad khoobsurat gazal hui hai janaab................................deron daaaad o mubaraqbaaaad.................ek shaaandaaaaar gazal k liye.....
बहारों में लदा हूँ जब फ़लों से
मेरी आदत है मैं झुकता रहा हूँ।
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