आदरणीय साथिओ,
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विषय पर एक नए कथानक के अंतर्गत सृजित सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई श्री शेख सहजाद उस्मानी साहब |
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।देश और दुनियाँ के बदलते परिवेश के बारे में बेहद उत्तम लघुकथा।
*श्राद्ध*
 
 पंडित जी श्राद्ध के लिए क्या कह रहे थे? मेज पर रखे अखबार को हाथ में लेते हुए नेहा ने प्रश्न किया।
 राजेश थोड़ा मुँह बिचकाते हुए बोला- 'अरे कहेंगे क्या? वही ढोंग ढकोसले, सनातन परम्परा की दुहाई। गायों का दान, ब्राह्मणों को खिलाना औऱ क्या।
'तो क्या आप मम्मी पापा का श्राद्ध नहीं करेंगे?' नेहा राजेश की ओर देखती हुई बोली।
एकदम से गम्भीर होते हुए राजेश बोला-'क्यों नहीं? पर अभी तक वे जीवित हैं या नहीं, इसका भी तो हमें सही-सही भान नहीं हैं।'
नेहा राजेश के मनोभावों को भाँपते हुए तुरन्त बोली- 'आप कितने दिन यूँही मम्मी पापा के लौट आने का इंतजार करते रहेंगे। केदारनाथ त्रासदी के भी 12 साल हो गए। अगर वे जीवित होते तो अब तक घर आ गए होते।'
राजेश भी उदास सा होकर बोल पड़ा- 'हाँ नेहा तुम ठीक कहती हो, अब मेरी भी उम्मीदें जबाब दे रहीं हैं। सोच रहा हूँ कि अब उनका श्राद्ध कर ही दिया जाए, पर अलग ढंग से, न कि जैसे पंडित जी या समाज कह रहा है।'
अलग ढंग से का क्या मतलब? खुलकर बताइए। यह कहते हुए नेहा भी राजेश के सामने पड़े सोफे पर बैठ गईं।
राजेश भावुक होते हुए बोल पड़ा- 'नेहा मुझे वह दिन याद है जब मैं बाहर पढ़ रहा था और घर के हालात बेहद बुरे थे, पापा पाई पाई जोड़कर मेरी फीस भर रहे थे, मम्मी एक अदद नई साड़ी के लिए तरस जाती थीं। मेरी जरुरतों को पूरा करने के लिए अपनी लगभग हर इच्छाओं का उन्होंने त्याग कर दिया था। मेरे लिए उनसे बढ़कर कोई फ़रिश्ता नहीं। उनके निरन्तर प्रोत्साहन और आशीष का ही नतीजा है कि आज मैं इतनी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी का सीईओ हूँ।'
नेहा राजेश का हाथ पकड़ते हुए बोली-आप इन बातों का इन 12 सालो में मुझसे क़ई बार जिक्र कर चुके हैं। मैं आपकी भावनाएं समझती हूँ। पर श्राद्ध की बात..
राजेश नेहा की बात काटते हुए बोला- नेहा क्या अतीत में जिन फरिश्तों ने हमारे लिए इतना कुछ किया उनके प्रति हमारा कर्तव्य केवल श्राद्ध तक ही सीमित है।
नेहा राजेश के कंधे पर सिर रखते हुए बोली- 'फिर भी जो सामाजिक मान्यताएं हैं, हमे उनका निर्वहन करते हुए श्राद्ध तो करना ही होगा।'
राजेश नेहा की ओर मुँह करके बोला- 'मैंने कब कहा कि मैं श्राद्ध नहीं करूँगा! नेहा मैं चाहता हूँ कि मेरे मम्मी पापा की पदचाप और आवाज निरन्तर मेरे कानों में गूँजती रहें। वे हमेशा मेरे आँखो के सामने रहें।'
यह कैसे सम्भव है? नेहा माथे पर बल देती हुई बोल पड़ी।
राजेश दार्शनिक अंदाज में बोला- 'संभव है नेहा, बस तुम्हे मेरा साथ देना होगा।'
'मैं तो आपके हर नेक फैसले के साथ हूँ, पहले आप बतायें तो।' नेहा बोल पड़ी
राजेश बोला-'हमने जो घर मम्मी पापा के नाम पर बनवाया है, उसमें वृद्धाश्रम खोल दिया जाए। हम आश्रम में आने वाले वृद्धों की यथासम्भव सेवा करेंगे, और उन्ही बुजुर्गों में हम अपने मम्मी पापा का अक्स भी पाते रहेंगे।
और श्राद्ध? नेहा विस्मय भरी आवाज में बोली।
 राजेश पुनः समझाते हुए बोला- 'नेहा जब एक साथ अनेक फ़रिश्ते एकही छत के नीचे आराम से अपने आखिरी दिनों में चैन की सांस ले रहे होंगे तब मम्मी पापा की आत्माएं जहाँ भी होंगी, सकून महसूस करेंगी। और यहीं हमारी मम्मी पापा के प्रति सच्ची श्राद्ध होगी।'
नेहा ने सहमति में सिर हिला दी।
 
 (मौलिक व अप्रकाशित)
भाई सुरेन्द्रनाथ जी, बहुत ही संदेशपरक और भावुकतापूर्ण लघुकथा रची है. यह रचना अपना सन्देश देने में भी स्पष्ट रही और प्रदत्त विषय को परिभाषित करने में भी, जिस हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है. 558 शब्दों की इस कथा को सम्पादित करके और चुस्त किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर:
//नेहा मुझे वह दिन याद है जब मैं बाहर पढ़ रहा था और घर के हालात बेहद बुरे थे, पापा पाई पाई जोड़कर मेरी फीस भर रहे थे, मम्मी एक अदद नई साड़ी के लिए तरस जाती थीं। मेरी जरुरतों को पूरा करने के लिए अपनी लगभग हर इच्छाओं का उन्होंने त्याग कर दिया था। मेरे लिए उनसे बढ़कर कोई फ़रिश्ता नहीं। उनके निरन्तर प्रोत्साहन और आशीष का ही नतीजा है कि आज मैं इतनी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी का सीईओ हूँ।'// 
82 शब्दों का यह संवाद कुल लघुकथा का तकरीबन साढ़े 14 प्रतिशत बनता है, जोकि अनावश्यक रूप से लम्बा हो गया है. लघुकथा में संवाद जितने चुस्त और चुटीले हों, रचना के प्रभाव और प्रवाह को बढ़ाते है. इस तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है.  
कथा बहुत अच्छी है , पर अधिक लम्बी हो गयी है | सादर |
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