आदरणीय साथिओ,
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विषय का नयापन और कथानक की ट्रीटमेंट ने इस रचना को एक अलग ही ऊंचाई बख्श दी है भाई सुधीर द्विवेदी जी. रोज़मर्रा जिंदगी से एक हल्का फुल्का see घटना को लेकर जिस कुशलता और बारीकी से सृजन किया है वह दर्शनीय है. रोना-धोना, जबरदस्ती की मार्मिकता या नकारात्मकता से ही लघुकथा चिरजीवी नहीं हो जाती, किसी विशेष क्षण को पकड़ कर कुशलता से कल्पनाशीलता और कलात्मकता की भट्टी में पकाने से भी एक प्रभावोत्पादक लघुकथा का निर्माण हो सकता है. आपकी यह रचना व्यक्तिगत तौर पर मुझे बेहद पसंद आई, जिस हेतु ढेरों ढेर बधाई एवं प्रशस्तिवाद प्रस्तुत है.
पति पत्नी के आपसी संबंध और नोंक झोंक को लेकर बुनी गयी एक प्यारी रचना, बहुत बहुत बधाई आपको
एक सधी हुई कथा लिखी है आपने आदरणीय सुधीर भैया | हार्दिक बधाई आपको इस कथा के लिए |
पति पत्नि के बीच ये रूठना मनाना ही तो रिश्तों में ताजगी भरता रहता है बशर्ते ज्यादा लम्बा न खिचे ..बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है हार्दिक बधाई आद० सुधीर द्विवेदी जी
एक बहुत बहुत अच्छे विषय पर कही गयी रचना के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय मोहम्मद आरीफ जी साहब| शब्दों को कम करने का स्कोप लग रहा है, खास तौर पर पहले दो पैराग्राफ में| सादर विचारार्थ,
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी बहुत सुंदर लघुकथा कही है. इस हेतु मेरी बधाई कबूल कीजिए. इस कथा को व्यापक बनाने के लिए एक सुझाव देना चाहता हूँ. आप इस में केसरीमल नाम ही रहने दे. // जैन साहब// हटा लीजिएगा. इस से रचना का दायरा बढ़ जाएगा. सादर.
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