आदरणीय साथिओ,
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विनम्र आभार आदरणीया।
बच्चे छोड़ क्र विदेश चले गए भतीजा भी बगावत पर उतर आया इसके बाद चाचा का ये कहना -- शायद अपनों का सुख इसे ही कहते हैं‘‘
ये समझ नहीं आया ऐसे बच्चों से कैसे सुख मिल सकता है ?
अंतिम पंक्ति में --कभी चीन कभी पाकिस्तान --कर सकते हैं
थोड़े से बदलाव से ये बेहतरीन लघु कथा हो जाएगी जो आपके लिए मुश्किल काम नहीं है
बहुत बहुत बधाई आपको आद० सुकुल जी
लघुकथा— सुख
रमन ने चकित होते हुए पूछा,' उस को पास बहुत सारा पैसा था. फिर समझ में नहीं आता है उस ने यह कदम क्यों उठाया ?'
' पैसा किसी सुख की गारण्टी नहीं होता है,' मोहित ने दार्शनिक अंदाज में जवाब दिया.
' क्यों भाई ? क्या तुम नहीं चाहते हो कि तुम्हारे पास गाड़ी हो, बंगला हो, कार हो और नौकरचाकर हो ?' रमन ने अपनी इच्छा व्यक्त की.
' चाहने से क्या होता है ?' मोहित ने जवाब दिया, ' यह सुख हमारी किस्मत में नहीं है. हम तो दो रोटी रोज कमाते और खाते हैं. किराए की गाड़ी और किराए का अच्छा मकान ही हमारी सब से बड़ी खुशी है.'
' यही तो मैं कह रहा हूं. उसे अपने भरेपूरे घर में क्या कमी लगी थी जो उस ने ऐसा किया है,' मोहित बोला,' हम जिस चीज के लिए तरस रहे हैं, वह सब उस के पास थी.'
' सही कहते हो भाई ! वह जब जो चाहती थी, कर सकती थी. एक हुक्म देती और सभी नौकर उस के सामने हाजिर हो जाते थे. ऐसा सुख उसे कहां मिलेगा ?' रमन ने पूछा.
' अरे ! जिस सुख की चाहत में वह अपने बच्चों और पति को छोड़ कर ड्राइवर के साथ भागी वह तो उसे मिलेगा ना ?' मोहित मुस्करा कर बोला तो रमन ने जवाब में अपने दोनों कंधे उचका दिए.
.
(मौलिक व अप्रकाशित )
आदरनीय शेख शहजाद उस्मानी जी आप को लघुकथा अच्छी लगी. शुक्रिया आप का. आप को मशीनी होते रिश्ते को व्यक्त करती रचना पसंद आई .
आदरणीय सुनील वर्मा जी आप ने सही कहा. यह त्रुटि तो अब गोष्ठी के समापन के बाद ही सुधर सकती है. शुक्रिया आप को कथा अच्छी लगी और उम्दा सुझाव दिया.
संशोधन हेतु संकलन आने के बाद निवेदन करें, कृपया रचना दोबारा पोस्ट मत करें.
लघुकथा— सुख
रमन ने चकित होते हुए पूछा,' उस को पास बहुत सारा पैसा था. फिर समझ में नहीं आता है उस ने यह कदम क्यों उठाया ?'
' पैसा किसी सुख की गारण्टी नहीं होता है,' मोहित ने दार्शनिक अंदाज में जवाब दिया.
' क्यों भाई ? क्या तुम नहीं चाहते हो कि तुम्हारे पास गाड़ी हो, बंगला हो, कार हो और नौकरचाकर हो ?' रमन ने अपनी इच्छा व्यक्त की.
' चाहने से क्या होता है ?' मोहित ने जवाब दिया, ' यह सुख हमारी किस्मत में नहीं है. हम तो दो रोटी रोज कमाते और खाते हैं. किराए की गाड़ी और किराए का अच्छा मकान ही हमारी सब से बड़ी खुशी है.'
' यही तो मैं कह रहा हूं. उसे अपने भरेपूरे घर में क्या कमी लगी थी जो उस ने ऐसा किया है,' रमन बोला,' हम जिस चीज के लिए तरस रहे हैं, वह सब उस के पास थी.'
' सही कहते हो भाई ! वह जब जो चाहती थी, कर सकती थी. एक हुक्म देती और सभी नौकर उस के सामने हाजिर हो जाते थे. ऐसा सुख उसे कहां मिलेगा ?' मोहित ने पूछा.
' अरे ! जिस सुख की चाहत में वह अपने बच्चों और पति को छोड़ कर ड्राइवर के साथ भागी वह तो उसे मिलेगा ना ?' रमन मुस्करा कर बोला तो मोहित ने जवाब में अपने दोनों कंधे उचका दिए.
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(मौलिक व अप्रकाशित )
हार्दिक बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी, बेहतरीन प्रस्तुति।हर व्यक्ति के लिये सुख की परिभाषा अलग होती है।इसको आधार बनाकर सुंदर लघुकथा लिखी गयी है।
आद० ओमप्रकाश जी अपने अपने सुख होते है ।नैतिकता से परे रिश्ते में सुख का मुद्दा उठाती अच्छी कथा है बधाई ।
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