Tags:
Replies are closed for this discussion.
प्रियवर धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी
आपकी बधाई आभार सहित स्वीकार है … आपकी ग़ज़ल मैंने यहां ढूंढ़ी … लेकिन असफल रहा ।
अब कल जब तमाम ग़ज़लें एक साथ लग जाएंगी
तो वे सारी ख़ूबसूरत ग़ज़लें , जो पढ़ने से महरूम रहा हूं … ज़रूर पढ़ूंगा ।
/सारी दुनिया को ये तरकीब सिखाई जाये,
आग नफरत की मोहब्बत से बुझाई जाये./
- जो दुनिया ये तरकीब सीख जाए, फिर तो धरती स्वर्ग बन जाए. सुन्दर सन्देश और बेहतरीन अश'आर के लिए हार्दिक बधाई.
सभी को हक़ है ज़माने में मियां जीने का,
किसी गर्दन पे छुरी अब ना चलाये जाये.
- एडमिन जी से अनुरोध है कि 'चलाये' की जगह 'चलाई' कर दें.
बहुत कमाल की ग़ज़ल कही है आदरणीय आलोक जी, मतले से मक्ते तक एक से बढ़कर एक शेअर कहे हैं, मुबारकबाद स्वीकार करें
//आज मुन्सित का तराजू भी झुकाए पैसा.
कैसे इन्साफ की जंजीर हिलाई जाये.//
पहले मिसरे में शायद टाइपिंग मिस्टेक की वजह से "मुन्सिफ" की जगह "मुन्सित" लिखा गया है !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |