For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 108 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-110

विषय - "नारी सर्वत्य पूज्यते !"

आयोजन की अवधि- 14 दिसम्बर 2019, दिन शनिवार से 15 दिसम्बर 2019, दिन रविवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 14 दिसम्बर 2019, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 2557

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

लावणी छन्द

कोमल है तू कभी कुसुम सी ,तीखी कभी कटारी है।
रूप ईश का लेकर नारी ,धरती पर अवतारी है।

कभी तोड़ती पत्थर मग में ,गर्मी में भूखी प्यासी।
गर्म कराती भोजन सब को ,खुद खा लेती है बासी।

अपने शिशु को बाँध पीठ से,रण-कौशल दिखलाती है ।
कभी धाय पन्ना सी त्यागी ,पत्थर दिल बन जाती है।

लाजवन्ति सी घूँघट काढ़े ,सभी दिलों पर राज करे।
अर्धांगिनी बहन बेटी माँ,बन कर सारे काज करे।

सास ससुर की सेवा करती,पक्षी को दाना डाले।
संस्कार उत्तम दे अपने, बच्चों को माता पाले।

नेह सिक्त मुस्कान अधर पर ,सबसे प्यार जताती है।
द्वार सूर्य का खुलता उससे ,पहले ही उठ जाती है।

धरती जैसा संयम तुझ में ,गोमाता सी दाती है।
नदियों जैसा प्रेम समर्पण ,निश्छल बहती जाती है ।

अष्ट भुजा दुर्गा कहलाती ,सोलह भुजा तुम्हारी है।
*सीप* नहीं अबला ,सबला तू, वंदन की अधिकारी है ।

'मौलिक व अप्रकाशित'

आदरणीया सुनन्दा झा जी विषय को चरितार्थ जरती बहुत बढ़िया रचना बधाई हो

हृदयतल से आभार आदरणीय रचना की सराहना के लिए ।

आ. सुनन्दा जी, प्रदत्त विषय पर उत्क्रिष्ट छन्द रचे है । हार्दिक बधाई ।

हृदयतल से आभार आदरणीय ,रचना आपको पसन्द आई ।लेखन सार्थक हुआ सादर।

कोमल है तू कभी कुसुम सी ,तीखी कभी कटारी है।
रूप ईश का लेकर नारी ,धरती पर अवतारी है।

.............सौम्य रूप है ईश्वर जैसा, ममता की प्रतिमा नारी 
.............रौद्र रूप भी धर लेती है, विपदा जो आए भारी 

कभी तोड़ती पत्थर मग में ,गर्मी में भूखी प्यासी।
गर्म कराती भोजन सब को ,खुद खा लेती है बासी।
.............अन्नपूर्णा बन कर महिला, सबका पोषण करती है 
.............सरल कठिन हलके या भारी, कर्मों से कब डरती है 

अपने शिशु को बाँध पीठ से,रण-कौशल दिखलाती है ।
कभी धाय पन्ना सी त्यागी ,पत्थर दिल बन जाती है।

..............झांसी की रानी बन अरि का, रण में वो मर्दन कर दे 
..............सदा फ़र्ज़ की खातिर अपना, सर्वस वो अर्पण कर दे 


लाजवन्ति सी घूँघट काढ़े ,सभी दिलों पर राज करे।
अर्धांगिनी बहन बेटी माँ,बन कर सारे काज करे।
............जीवन के हर इक रिश्ते को, मधुर नेह से वो सींचे 
............कष्ट कभी खुद पर आए तो, सह जाए अँखियाँ भींचे 


सास ससुर की सेवा करती,पक्षी को दाना डाले।
संस्कार उत्तम दे अपने, बच्चों को माता पाले।
...........सेवा की प्रतिमूर्ति सहज वो, प्रकृति है उसको प्यारी 
...........संस्कृति की वाहक बन कर वो, सींचे आँगन की क्यारी 

नेह सिक्त मुस्कान अधर पर ,सबसे प्यार जताती है।
द्वार सूर्य का खुलता उससे ,पहले ही उठ जाती है।
...........दिनचर्या में अनुशासन की, नित्य प्रति प्रतिपालक है 
...........सबके दिल की चाबी रखती, घर भर की संचालक है 

धरती जैसा संयम तुझ में ,गोमाता सी दाती है।
नदियों जैसा प्रेम समर्पण ,निश्छल बहती जाती है ।

.......त्याग, दया, संयम की प्रतिमा, मन अंतर से है निश्छल 
.......कभी न रूकती कभी न थकती, बहती जाती कल कल कल 

अष्ट भुजा दुर्गा कहलाती ,सोलह भुजा तुम्हारी है।
*सीप* नहीं अबला ,सबला तू, वंदन की अधिकारी है ।

.........पूज्य शक्ति सी, मान्य भक्ति से, अभिनत शीश करें वंदन
.........मातृ-शक्ति है सदा धन्य तू, तुझसे ही बहता जीवन 

बहुत प्यारे छंद कहें हैं आदरणीया सुनंदा झा जी 
बहुत बहुत बधाई 

सस्नेह 

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी बहुत बढ़िया लिखा कितनी भी प्रशंसा की जाय कम है, बहुत बहुत बधाई

आपको रचना पसन्द आई लेखन सार्थक हुआ आदरणीया ,हृदयतल से आभार आपका ।

अप्रतिम! अनुपम लेखन आदरणीया ,नमन है आपकी लेखनी को ।

मेरा हौसला बढ़ाने के हृदयतल से आभार आदरणीया ।

प्रथम प्रस्तुति - दोहा छंद


जो कुल नारी का करे, देवी सा सत्कार
उस कुल लेते जन्म हैं, अंशों में अवतार।१।


शिव नारी के मान को, देते आधी देह
तभी अधूरा ही रहे, नारी बिन हर गेह।२।


किया राम ने सीख जो, वही श्याम का सार
माँ जीसस की धन्य  थी, दिये सही सँस्कार।३।


नारी को सम्मानता, जब था वैदिक काल
सत्कर्मी उन्नत रहा, तब मानव खुशहाल।४।


नारी नर की आत्मा, शतपथ कहे विचार
नारी बिन नर का  रहे, आधा ही आधार।५।


मानक सभ्य समाज का, नारी का सम्मान
बढ़े धर्म सँस्कृति  सदा, उससे पाकर ज्ञान।६।


वैदिक युग कहता मिला, देवी है हर नार
जैसे  शिव  हैं  धारते,  वैसे  तू  भी  धार।७।


नारी  है  सच  मानिए,  पुरुषों  का  सम्मान
इसीलिए इसका सदा, बढ़चढ़ रखना ध्यान।८।


वर तलाश उस काल में, नारी का अधिकार
इस युग स्वेच्छा से नहीं, वर सकती स्वीकार।९।


सैनिक लाये कैद कर, समझ शत्रु की जान
वीर शिवाजी  ने  रखा, पर  गौहर का मान।१०।


बच्चों को दे सोच नव, मानुष करती नार
घर समाज या देश का, तब होता उद्धार।११।


मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी विषयानुकूल बहुत बेहतरीन छंद लिखा बहुत बहुत बधाई

आ. भाई छोटेलाल जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
29 minutes ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
57 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
1 hour ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
1 hour ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
3 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service