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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-113

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 113वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  फरहत एहसास साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"मुझे अब चारों जानिब से पुकारा जा रहा है"

1222     1222      1222    122

मुफाईलुन   मुफाईलुन    मुफाईलुन  फ़ऊलुन

(बह्र: हजज़ मुसम्मन महजूफ )

रदीफ़ :- जा रहा है।
काफिया :- आरा( पुकारा, नज़ारा, हारा, किनारा, इशारा आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 नवंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 नवंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 नवंबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

जनाब अमित साहिब, गज़ल पसन्द करने और आपकी इस इनायत का बहुत बहुत शुक्रिया ।भाव बिल्कुल साफ़ है, तुम्हारे मुस्कराने में किसी की जान जा रही है मगर तुम्हारा कुछ नहीं जा रहा है l

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहब. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

सुना हमने, हकीकत को संवारा जा रहा है

लगा ऐसा,गगन को ही उतारा जा रहा है।1

दिलों की बात दिल में आशियां करके रहेगी

वहम ऐसा जहां में भी पसारा जा रहा है।2

बड़ी शिद्दत से' जिसको चाहते थे हमनवा सब

वहां वह दुश्मनों में भी दुलारा जा रहा है।3

हवाओं में घुलीं रुसवाइयां कुछ इस कदर अब

भल जो थी, उसे भी यूं बिसारा जा रहा है।4

कभी जो चांद को भी दाग़वाला कह रहा था

खुदी में डूबता खुद वह सितारा जा रहा है।5

सुनूं मैं बात किसकी और किसकी ना सुनूं मैं?

मुझे अब चारों जानिब से पुकारा का रहा है।6

"मौलिक व अप्रकाशित"

अच्छी ग़ज़ल हुई है मनन कुमार सिंह जी। बहुत ख़ूब

शुक्रिया दोस्त।

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'वहम ऐसा जहां में भी पसारा जा रहा है'

मैं जानता हूँ आप मानेंगे नहीं, लेकिन मंच को जानकारी देना मेरा फ़र्ज़ है,इस मिसरे में सहीह शब्द "वह्म"21 है,देखियेगा ।

'भल जो थी, उसे भी यूं बिसारा जा रहा है'

ये मिसरा बह्र से ख़ारिज हो रहा है,देखियेगा ।

आदरणीय समर जी,आपका शुक्रिया।टंकण की विचलन है 'भल',जो मूलतः 'भली'(अच्छी) हैं।शेष आपकी सलाह पर सदा ही गौर किया जाता है,सादर।

देखता हूं किस शब्द से  वहम को विस्थापित कर सकता हूं।

आदरणीय समर जी, वहम वाली उला को यूं कह सकते हैं:

दिलासा को जहां में फिर पसारा जा रहा है।

या पूरा शेर भी बदल सकते हैं:

कहा जाता ,मिटा दें खार मन से जिस कदर भी
भिंगोकर फिर बतासा को पसारा जा रहा है।

@

'वह्म' वाला मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

'जहाँ में वह्म ऐसा भी पसारा जा रहा है'

जी, "ऐसे" भी हो सकता है।

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