परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 106वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब
हफ़ीज़ जौनपुरी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"जहाँ में याद रह जाएगा कुछ अपना फ़साना भी"
1222 1222 1222 1222
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
(बह्र: हजज़ मुसम्मन सालिम )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 अप्रैल दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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जनाब मुनीश तन्हा साहिब आदाब
उम्दा अशआर के लिए बहुत बहुत मुबारक बाद
कभी फ़ुर्सत मिले तो याद करना वो ज़माना भी
थी लैला तुम किसी की था तुम्हारा इक दिवाना भी |
वो जिसमें चाँद से सुन्दर बताया था तुम्हें मैंने
तुम्हारे काम आयेगा मेरा वो ख़त पुराना भी |
बहुत हैरान करता था मुझे मैं क्या बताऊँ अब
वो तेरा सामने हो कर वो तेरा याद आना भी |
ज़रा सी बात पे मुझसे सनम वो रूठना तेरा
बहुत भाता था मुझको यार तेरा मूँ बनाना भी |
वो इक पिंपल पे दिन सर पर उठाना याद है मुझको
उसी का रातभर फिर फ़ोन पर किस्सा सुनाना भी |
बिना तेरे मुझे अच्छा बहारों में नहीं लगता
लगा करता था मुझको तो कभी पतझड़ सुहाना भी |
चली आ आज भी मैं जान तेरी राह तकता हूँ
न होगा यार मुझ जैसा कोई तेरा दिवाना भी |
मुहब्बत से भरा लगता है कितना यार ये मिसरा
"जहाँ में याद रह जाएगा कुछ अपना फ़साना भी |
मौलिक अप्रकाशित
जनाब अनीस शेख़ साहब बहुत बहुत मुबारकबाद आपकी ख़ूबसूरत पेशकश पर मोहतरम।
Asif ज़ैदी साहब ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय मोहम्मद अनीस जी बेहतरीन गजल पर दाद कबूल फरमाए
अमित कुमार जी बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब अनीस शेख साहब. अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद
Salim raza साहब ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब अनीस शैख़ साहिब आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
'थी लैला तुम किसी की था तुम्हारा इक दिवाना भी'
इस मिसरे में 'थी' को "थीं" कर लें ।
'वो तेरा सामने हो कर वो तेरा याद आना भी'
इस मिसरे में 'वो' शब्द दो बार खटकता है,और सामने रहकर याद आना कुछ समझ में नहीं आया?
'बहुत भाता था मुझको यार तेरा मूँ बनाना भी'
इस मिसरे में 'मूँ' को "मुँह" कर लें ।
'न होगा यार मुझ जैसा कोई तेरा दिवाना भी'
इस मिसरे में 'यार' की जगह "और" शब्द उचित होगा,ग़ौर करें ।
जनाब समर कबीर साहब ग़ज़ल तक आने और इस्लाह करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, जो टंकड़ में ग़लती रह गयी उसे सुधार लूंगा, "वो तेरा सामने हो कर वो तेरा याद आना भी "इस मिसरे में ये कहना चाहा है, की उसकी याद इस तरह आती है की उसके सामने आ जाने पर भी उसका खयाल और उसकी याद पीछा नहीं छोड़ती "पर ठीक से कह नहीं पाया कुछ अलग कोशिश करता हूँ |
शानदार गजल के लिए बधाइयाँ
अरुण कुमार निगम जी ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
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