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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग-1)

साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....

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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2)

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शुक्रिया आ. नवीन जी 
ये   दूसरी प्रस्तुति है.. पहली अभी  आप के इंतज़ार में है 
सादर 

बहुत उम्दा ग़ज़ल है भाई नीलेश जी.... 2019 का आइना दिखा दिया !!!

शुक्रिया आ. अजीत जी,
.
आप   की टिप्पणी पर कृष्ण बिहारी "नूर" का एक शेर याद आ गया ..
.

वो तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा

सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए... अब आपको क्या याद आया ये आप जानें ;))))

आदरणीय नीलेश जी आदाब,

                    बहुत ही तीव्र कटाक्ष । इस ग़ज़ल के क्या कहने । ज़िंदाबाद ! ज़िंदाबाद !! ज़िंदाबाद ! ज़िंदाबाद!! 

                      शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिए ।

शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब

 आदरनीय नीलेश जी, शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई

शुक्रिया आ. मोहन बेगोवाल जी

बहुत उम्दा व्यंग्य किये गए हैं, आ.निलेश सर जी। क्या कहने हैं। वाह वाह वाह !! हर शेर बहुत बढ़िया है। आख़िरी वाला सर्वोत्तम लगा। वाह

शुक्रिया आ. दिनेश भाई

वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह इस ग़ज़ल के तेवर तो सबसे अलग हैं मजा आ गया पढ़के ऐसा लगा दाल के साथ चटपटी चटनी मिल गई हो वाःह्ह्ह्ह नीलेश भैया 

शुक्रिया आ. राजेश दीदी

 मौजूदा हालात पर बहुत ही मारक ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय निलेश सर। पढ़कर मज़ा आ गया। इस उम्दा व्यंग्यात्मक प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

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