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नजरे झुकाये बैठे हैं- ग़ज़ल

आप महफिल में आये बैठे हैं
फिर भी नजरें  झुकाये बैठे हैं

मसअला ये कि मेरी बात से वो
अब  तलक़  खार  खाये  बैठे हैं

मुझको तो याद भी नहीं और वो
बात  दिल  से  लगाए  बैठे  हैं

हम तो करते नहीं कभी पर्दा
वो ही चिलमन गिराए बैठे हैं

हमने हर चीज याद रक्खी है
जाने  वो  क्यूँ  भुलाए बैठे हैं

हर तरफ दौर है ठहाकों का
और वो मुंह  फुलाए  बैठे हैं

बात दर अस्ल थी बहुत छोटी
वो  बड़ी  सी  बनाए  बैठे  हैं !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by विनय कुमार on August 6, 2018 at 11:11am

बहुत बहुत आभार आ बसंत कुमार शर्मा जी।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 5, 2018 at 11:59am

वाह क्या कहने शानदार गजल, आदरणीय समर कबीर जी की इस्लाह लाजबाब, आनंद आ गया आदरणीय 

Comment by Samar kabeer on August 5, 2018 at 10:37am

मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।

Comment by विनय कुमार on August 4, 2018 at 6:36pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब इस तरह से मेरी त्रुटियों को इंगित करने और सुधार करने के लिए. अभी सुधार कर देता हूँ, पुनः आभार

Comment by विनय कुमार on August 4, 2018 at 6:35pm
बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी हौसला अफजाई के लिए
Comment by Samar kabeer on August 4, 2018 at 6:09pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'आज महफिल में आये बैठे हैं'

इस मिसरे में 'आज' की जगह "आप" करना उचित होगा ।

'एक मसले में मेरी बातों से'

इस मिसरे में सहीह शब्द है "मसअला" इसलिये इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'मसअला ये कि मेरी बात से वो'

मुझे तो याद नहीं वो अब तक'

इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा :-

'मुझको तो याद भी नहीं और वो'

'वो बिना  मुस्कुराए  बैठे हैं'

इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-

'और वो मुंह फुलाए बैठे हैं'

'दरअसल बात बड़ी छोटी थी'

इस मिसरे में सही शब्द है "दर अस्ल',इसलिये मिसरा यूँ कर लें:-

'बात दर अस्ल थी बहुत छोटी'

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 4, 2018 at 11:35am

हाएदिक बधाई आदरणीय विनय जी।बेहतरीन गज़ल।

एक मसले में मेरी बातों से
अब तलक़ खार खाये बैठे हैं

मुझे तो याद नहीं वो अब तक 
बात  दिल  से  लगाए  बैठे  हैं

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