अदेह रूप ...
सर्वविदित है
देह का शून्यता में
विलीन होना
निश्चित है
मगर
अदेह चेतना
सृष्टि में व्याप्त
चैतन्य कणों से
निर्मित
आदि अंत से मुक्त
अनंत
अभिश्रुति की
अभिव्यंजना है
मुझे तुमसे मिलने के लिए
उन अदृश्य कणों से निर्मित
धागों की अदेह को
अपने चेतन में
अवतरित करना होगा
मैं
मेरी देह सी
अतृप्त नहीं रह सकती
मैं
तुमसे
अवश्य मिलूंगी
अपने
अदेह रूप में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब। .. प्रस्तुति पर आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय महेन्द्र कुमार जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से शुक्रिया।
आ. भाई सुशील जी, अच्छी रचना हुयी है , हार्दिक बधायी।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा और प्रभावी कविता हुई है,इस प्रस्तुती पर बधाई स्वीकार करें ।
उम्दा कविता है आदरणीय सुशील सरना जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशिल सरना जी।
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी। लाज़वाब प्रस्तुति।
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