For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-ग़ालिब की ज़मीन पर

था उन को पता अब है हवाओं की ज़ुबाँ और
उस पर भी रखे अपने चिराग़ों ने गुमाँ और. 
.
रखता हूँ छुपा कर जिसे, होता है अयाँ और 
शोले को बुझाता हूँ तो उठता है धुआँ और
.
ले फिर तेरी चौखट पे रगड़ता हूँ जबीं मैं  
उठकर तेरे दर से मैं भला जाऊँ कहाँ और?
.
इस बात पे फिर इश्क़ को होना ही था नाकाम    
दुनिया थी अलग उन की तो अपना था जहाँ और.
.
आँखों की तलाशी कभी धडकन की गवाही 
होगी तो अयाँ होगा कि क्या क्या है निहाँ और.
.
करते हैं अगर इश्क़ तो बस इश्क़ हैं करते
कुछ काम नहीं करते हैं फिर “नूर” मियाँ और.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 806

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 21, 2018 at 2:42pm

शुक्रिया आ. नादिर खान साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 21, 2018 at 2:42pm

शुक्रिया आ. विजय जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 21, 2018 at 2:42pm

शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब.. लोकतंत्र बचाने की लड़ाई में व्यस्त था अत; आप की टिप्पणी पर देर हो गयी आने में 
आभार 

Comment by नादिर ख़ान on May 15, 2018 at 12:56pm

वाह वाह पढ़कर आनंद आ गया ....  बेहतरीन ग़ज़ल कही आदरणीय नीलेश जी आपने .... 

Comment by vijay nikore on May 15, 2018 at 12:38pm

बहुत ही दिलकश गज़ल लिखी है। बधाई।

Comment by Mohammed Arif on May 15, 2018 at 10:59am

आदरणीय नीलेश जी आदाब,

                          लाजवाब ग़ज़ल । दिल को सुकून की बारिश देने वाली ग़ज़ल । वैसे भी मालवांचल में भीषण गरमी और उत्तर भारत में आँधी-तूफान का ज़बर्दस्त दौर चल रहा है । बाक़ी गुफ़्तगू गुणीजनों के बीच हो चुकी है । दिलु मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 15, 2018 at 10:56am

शुक्रिया आ. लक्ष्मण धामी जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2018 at 12:23pm

आ. भाई नीलेश जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2018 at 8:46am

धन्यवाद आ. हर्ष जी 
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2018 at 8:45am

शुक्रिया आ. समर सर..
ग़ज़ल  पोस्ट करने के बाद कुछ विचार उठे थे इसलिए कमेंट में कह दिए,
ग़ज़ल आप के समर्थन से पूर्ण हुई..
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
7 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
9 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
9 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
22 hours ago
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service