For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - घाट पर सोया मिलूँगा ये बता देता हूँ मैं

2122 2122 2122 212

आज अपना सारा ईगो ही जला देता हूँ मैं
बर्फ़ रिश्तों पर जमी उसको हटा देता हूँ मैं

मेरे होने की घुटन तुमको न हो महसूस अब
ज़िन्दगी खोने का खुद को हौसला देता हूँ मैं

नाम दूँ बदनामियाँ दूँ, मेरे वश में है नहीं
सो मेरे होठों को चुप रहना सिखा देता हूँ मैं

तेरे चहरे पर शिकन संकोच अब आए नहीं
इसलिए सौगात में अब फ़ासला देता हूँ मैं

कुछ नहीं बस हार इक ला कर चढ़ा देना प्रिये
घाट पर सोया मिलूँगा ये बता देता हूँ मैं

मौलिक अप्रकाशित

Views: 886

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on January 6, 2018 at 5:47pm

'सो मेरे होटों को चुप रहना सिखा देता हूँ मैं' 

इस मिसरे को यूँ होना चाहिए :-

'सो,लबों को अपने चुप रहना सिखा देता हूँ मैं'

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 6, 2018 at 11:46am

आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम। बहुत दिनों बाद आपका आशीर्वाद मेरी किसी रचना को प्राप्त हुआ, अच्छा लग रहा। सुझाव के अनुरूप सुधार के लिए अभी प्रयास करता हूँ, ज्यों ही सफल होऊंगा, पुनः संशोधित रूप प्रस्तुत करूँगा.....

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 6, 2018 at 11:42am

आदरणीय लक्ष्मण सर सादर आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2018 at 11:34am

भाई पंकज जी, आपकी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है और आशानुरूप चर्चा भी हो रही है.

आज अपने सारे ख़्वाबों को जला देता हूँ मैं

बर्फ़ रिश्तों पर जमी उसको मिटा देता हूँ मैं

मेरी दृष्टि से देखें तो मैं मतले के दोनों मिसरों में कोई संबन्ध ही नहीं देख पा रहा. अपने सारे ख़्वाबों को जला देने का काम कोई क्षुब्ध, निराश, टूटा हुआ आदमी ही कर सकता है. फिर अचानक वह रिश्तों पर जमी बर्फ़ को हटाने जैसा कोई सकारात्मक कार्य करने के लिए कैसे उद्यत हो उठता है ? जमी हुई बर्फ़ को हटाना वस्तुतः breaking the ice जैसे मुहावरे का अनुवाद है. इस विन्दु के परिप्रेक्ष्य में आप मतलेको पुनः देखें. यदि मैं गलत हूँ तो मेरा मार्ग-दर्शन करें. 

मेरे होने से घुटन तुमको न हो महसूस अब

ज़िन्दगी खोने का खुद को हौसला देता हूँ मैं

मेरे होने की घुटन तुमको न हो महसूस अब .. इन संदर्भों में यह सही पंक्ति होगी

नाम दूँ बदनामियाँ दूँ, मेरे वश में है नहीं

प्रीत तुझको बद्दुआएँ कब भला देता हूँ मैं

सानी मिसरे की तार्किकता के सापेक्ष उला मिसरे को और साधना उचित होगा. 

तेरे चहरे पर शिकन संकोचमय आए नहीं

सो तुझे सौगात में अब फ़ासला देता हूँ मैं

’संकोचमय’ का सही प्रयोग नहीं हो सका है. सीधा ’संकोच में’ कर लेने में क्या समस्या है ?

कुछ नहीं बस फूल इक लाना गुलाबी साथ में

घाट पर सोया मिलूँगा ये बता देता हूँ मैं

घाट पर सोये हुए व्यक्ति के लिए किसी का गुलाबी फूल लेकर क्या या क्यों जाना ? 

खींच कर तो अर्थ निकल आ ही रहा है. किंतु, भाई, भावनात्मक प्रसंग बाहर रखें, पंक्तियाँ को तो और स्पष्ट होना था न ?

बहरहाल, आपके इस सकारात्मक प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएँ.. आप सतत प्रयास करते रहें. आपकी कोशिशें क़ामयाब हो रही हैं. 

शुभेच्छाएँ 

 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2018 at 1:02pm

आ. भाई पंकज जी, बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 4, 2018 at 8:24am

आदरणीय बृजेश जी बहुत बहुत आभा

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2018 at 10:52pm

क्या कहने आदरणीय बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही...सादर

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 3, 2018 at 8:23pm

 दरणीय अजय जी सादर आभार, मिटा जगह हटा ही होना था

Comment by Ajay Tiwari on January 3, 2018 at 3:47pm

आदरणीय पंकज जी, 

आदरणीय समर साहब के निर्देश के अनुसार मतले के सानी को ' बर्फ़ जो रिश्तों पे है उसको हटा देता हूँ मैं' किया जा सकता है. 

 

'सो तुझे सौगात में अब फ़ासला देता हूँ मैं'     ये है ग़ज़ल में बात कहने का अंदाज़ !  वाह !

बहुत खूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.

सादर

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 2, 2018 at 9:58pm

आदरणीय  बाबूजी फिर से संशोधित करता हूं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service