For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" क्या कहा ,हमेशा के लिए आ गई है । "
"हाँ !हाँ ! हाँ !! कितनी बार कहूँ मैं हमेशा के लिए आ गई हूँ ।" श्वेता ने झुँझलाकर कहा ।
"आखिर क्यों बेटी ?कुछ तो वजह होगी ?"
"वही भेड़िया ।अब वो मौका पाकर मेरा शिकार करना चाहता है । "
अब माँ को अच्छे से समझ में आ गया । भेड़िया और कोई नहीं श्वेता का देवर है क्योंकि वह पहले भी कई बार माँ को बतला चुकी है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Views: 562

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohammed Arif on October 15, 2017 at 5:50pm
आदरणीया अल्पना भट्ट जी आदाब, भेड़िया से आशय श्वेता के देवर से है जिसका चाल-चलन ठीक नहीं है और वह उस पर बुरी नज़र रखता है । वह पहले भी उसके बारे में बता चुकी है । शायद अब स्पष्ट हो गया है । लघुकथा पर टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार । सादर ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2017 at 5:35pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब कथा कुछ समझ नहीं आई , कहीं कुछ अनकहा रह गया ऐसा लग रहा है ,कुछ अधूरापन सा प्रतीत हो रहा है देखिएगा | सादर | 

Comment by Mohammed Arif on October 9, 2017 at 10:01pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी लघुकथा पर प्रतिक्रिया देकर उसका मान बढ़ाने का बहुत-बहुत आभार । आख़िरी वाक्य में सुधार कर लिया है ।
Comment by Mohammed Arif on October 9, 2017 at 9:58pm
आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आदाब, आपकी निरपेक्ष प्रतिक्रिया से मेरा लेखन सार्थक हो गया । बहुत-बहुत शुक्रिया ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2017 at 6:43pm
गंभीर मुद्दे पर सार्थक बढ़िया प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब। आख़री वाक्य की ज़रूरत/रचना पर पुनः ग़ौर फ़रमाइयेगा।
Comment by Mohammed Arif on October 8, 2017 at 6:42pm
बहुत-बहुत आभार आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब । मेरा लेखन सार्थक हो गया आपकी टिप्पणी पाकर ।
Comment by Samar kabeer on October 8, 2017 at 5:58pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
16 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service