For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जला पुतला सभी ने पाप की कर दी विदाई है//अलका 'कृष्णांशी'

1222 1222 1222 1222 

.

हमारे सामने सबने कसम गीता की खाई है
जला पुतला सभी ने पाप की कर दी विदाई है

.

सभी ये बेटियाँ बहनें सुरक्षित आज से होंगी
अजी रावण की रावण ने यहां कर दी पिटाई है

.

बड़ी बातें सभी करते नही है राम कोई भी
कहीं हिन्दू कहीं सिख है यहाँ कोई ईसाई है

.

न होती धर्म की सेवा न है संस्कार से नाता
दया बसती नही दिल में दिखावे की भलाई है

.

लगाकर हाथ आँचल को वहीं खींसे निपोरेंगे
अजी भीतर के रावण ने हथेली अब खुजाई है

.

उठो इस कलयुगी रावण से अब दुश्वार है जीना
यहाँ साधू जिसे समझा वो निकला आतताई है

.

अहंकारी की मस्ती में मर रही आज मानवता
कहीं है द्रोपदी लुटती कहीं सीता जलाई है

.

जलाए हर बरस रावण जहां भर में दिखाने को 
मगर भीतर के रावण को नही माचिस दिखाई है

.

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 805

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 6, 2017 at 6:38pm

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar  जी ,सादर अभिवादन ,रचना को समय देने व्  उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद। संशोधन में देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ।आद0 Samar kabeer जी के मार्गदर्शन अनुसार संशोधन कर दिया है  । सादर। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2017 at 3:22pm

आ.अलका जी,
अच्छा प्रयास   हुआ है... गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें 
सादर 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 6, 2017 at 2:09pm

आदरणीय  Afroz 'sahr'  जी ,सादर अभिवादन ,रचना को समय देने व्  उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद। संशोधन में देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ।   सादर। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 6, 2017 at 2:08pm

आदरणीय Samar kabeer जी ,सादर अभिवादन ,रचना को समय देने व्  उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार । अभी संशोधन करती हूँ।   सादर। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 6, 2017 at 2:06pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी ,सादर अभिवादन ,रचना को समय देने व्  उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद। ।  सादर। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 6, 2017 at 2:05pm

आदरणीय Mohammed Arif जी ,सादर अभिवादन ,रचना को समय देने व्  उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद। कृपया यदि सम्भव हो तो वर्तनी की अशुद्धियां जरा clearly बताइये।  सादर।

Comment by Afroz 'sahr' on October 2, 2017 at 4:02pm
सुझावों का संज्ञान लें।सादर
Comment by Afroz 'sahr' on October 2, 2017 at 3:52pm
मोहतरमा अलका जी बहुत सुंदर रचना है ।बहुत बधाई आपको समर साहब के सुझावों का संगय
Comment by Samar kabeer on October 2, 2017 at 3:02pm
मोहतरमा अलका जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
'सभी बहनें सभी बेटी सुरक्षित आज से होंगी'
इस मिसरे में 'बेटी'एक वचन में है, जबकि बहुवचन में होना चाहिए,इस मिसरे को यूँ किया जा सकता है :-
'सभी ये बेटियाँ बहनें सुरक्षित आज से होंगी'
'उठो जागो कलयुगी रावण से दुश्वार है जीना'
ये मिसरा लय में नहीं है,यूँ किया जा सकता है :-
'उठो इस कलयुगी रावण से अब दुश्वार है जीना'
Comment by नाथ सोनांचली on October 2, 2017 at 4:39am
आद0 अलका जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास, कटाक्ष व्यंग लिए सभी अशआर अपने मे कुछ समेटे हुए हैं।बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
10 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service