आदरणीय साथिओ,
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आ. इन्द्रविद्यावाचस्पति जी, प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा कही है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
1. लघुकथा में संपादन की ज़बरदस्त गुंजाईश है जैसे, //सुखी जीवन का महत्व रामेष को तब अनुभव हुआ ज बवह अपने जीवन की आखरी सांस ले रहा था।// "सुखी जीवन का अनुभव रमेश को तब हुआ जब वह अपने जीवन की आखरी सांस ले रहा था।"
2. संवादों की कमी होने से लघुकथा बोझिल है.
3. पंचलाइन गायब है.
4. लघुकथा सीधी और सपाट है. इसमें कोई सरप्राइज एलिमेंट नहीं है.
सादर.
लघुकथा कहने का सद्प्रयास तो हुआ है लेकिन रचना बेहद सपाट और प्रभावहीन रह गई, भाषाई व व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियाँ बहुत चुभ रही है. बहरहाल आयोजन में सहभागिता हेतु अभिनंदन स्वीकारें.
आ. चित्रा जी, प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया रचना प्रस्तुत की है आपने. शीर्षक संभवतः जल्दबाजी या प्रथम प्रयास की वजह से छूट गया. 1. //इसलिए दोस्ती की चर्चा तक ना आने देता।// इस पंक्ति (1.) हो हटा दें क्योंकि इस पंक्ति (2.) से //नेता जी व्यंग करते हुए बोले,” राकेश जी, कहाँ चल दिये, रुकते तो देखते जीवन भर दिए की तरह टिमटिमाने से आगे जहाँ और भी हैं।”// विरोधाभास उत्पन्न हो रहा है. पंचलाइन बहुत ज़बरदस्त है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
अच्छी और संदेशपरक लघुकथा है, मगर अभी सम्पादन की काफी गुंजाइश बाकी है. इस सद्प्रयास हेतु बधाई प्रेषित है आ० चित्रा राणा जी. सुधि साथिओं की सलाह का संज्ञान अवश्य लें.
स्वागत है चित्रा बहन आपका । लघुकथा की अंतिम पंक्ति ' निरंतर उजाला चाहने वालों कोे निरंतर तेल भी देना होता है।' बहुत ही सार्थक है । इसी को आधार बनाकर इसका शीर्षक चयन किया जा सकता है । लघुकथा के बारे में सुधी साथियों की बातों का संज्ञान लें। सादर
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