For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

***दहलीज के उस पार***(लघुकथा)राहिला

शराबी पति से रुई की तरह धुनी जा रही कुसमा ,गाँव में आयी पुलिस की गाड़ी देख कर दौड़ पड़ी।
"बचा लो साहब !बहुत मारा ये जल्लाद हमको,इसकी ऐसन पूजा करो कि हाँथ उठाना भूल जाए ।"एक तो अचानक आई पुलिस और ऊपर से कुसमा की शिकायत ने गोविंद पर चढ़ी दारू के सुरूर को तनिक हल्का कर दिया। वह जुबान जो अभी तक तूफ़ान की गति से गालियां उगल रही थी,तालू से जा चिपकी।वह थोड़ा सहम सा गया।
"क्यों रे!ज्यादा चर्बी चढ़ गयी लगता?
एक बार की मेहमानी में सारी पिघला देंगे। सुन रहा है ना?और तू!,पुलिस वाला कुसमा की ओर देख कर बोला ।
हम जरा एक को धर के आते है ।फिर चल थाने इसकी रिपोर्ट लिखवा फिर देख इसकी अक़ल कैसे ठिकाने लगाते हैं हम।"पुलिस वाले ने सकपकाये से खड़े गोविंद की ओर देखकर, मिसमिसाते हुए कहा।
"अरी कलमुयी !काहे खसम खाने बैठी है ।तेरी रपट पर जे पुलिस वाले तेरे आदमी को बैठन लाक भी ना छोड़ेंगे । घर की बात घर में निपटा ले सो ज्यादा भली। नई तो सेकने तो तुमई को है बाद में ।समझी के नाई!कछु लोक लाज की भी फिकर कर लेती । "सास, चचिया सास सुर में सुर मिलाते हुए ,कुसमा के पास आकर आंखे तरेर के फुसफुसाईं।
अब सीधी सरल कुसमा को कुछ न सूझ रहा था । थोड़ी देर बाद पुलिस की गाड़ी फिर उसके द्वारे रुकी।
"बोल बाई! चल रही है थाने?"
"रहन दो साहब ! अब किसमत ही फूटी तो कोई का कर सकत है।"वह हाथ भर का पल्लू खींच कर बोली।
"देख बाई! किस्मत को दोष ना दे ।तू जब तक रिपोर्ट नहीं लिखवाएगी ,हम कुछ नहीं कर सकते ।और इसके हौसले ऐसे ही बुलंद रहे तो कल फिर यही सब होगा तेरे साथ। "
"नई साहब!अब अगली बेर कुछ होगा तो देखूँगी।"
इतना सुन कर गोविन्द समझ गया कि कुसमा लोक लाज के कारण पीछे हट गयी है ।बस फिर क्या था!खून में जो दारू बाक़ी थी, वह फिर जोश में आ गयी।
"अरे बाद में क्या देखेगी ?अभी देख ले ।मैं क्या डरता हूँ किसी से ?तू क्या भेजेगी थाने ,ले मैं खुद ही बैठ जाता हूँ गाड़ी में।"और झोंक में आकर वह लपक कर गाड़ी में जा बैठा। "तड़ाक...."
गाल पर एक थप्पड़ पड़ते ही वह धूल में ज्यों ही औंधे मुँह गिरा ,तो खून में जो बची थी वह भाप बन कर उड़ गयी।
"साले! बाप की गाड़ी समझी है जो बैठ गया ?
सुधर जा...!और खैर मना औरत ने दहलीज नहीं नाकी ,वरना बस नाकने भर की देर है और तेरे जैसों की अक़ल घुटनों से खोपड़ी में आते देर नहीं लगती, समझा!"

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1098

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on June 5, 2017 at 3:30pm
शुक्रिया आदरणीय सर जी!,आपकी बात से बहुत कम सहमत हूँ।जमाना एक खास वर्ग का ज्यादा बदल गया है।और थोड़ा उनके भी हालत सुधरे हैं जो पैरों पर खड़ी हैं ।बाक़ी अभी भी हाल बेहाल है औरतों का। गांव ,कस्बों, निचले और मध्यम वर्गों में किसी न किसी रूप में प्रताड़ित स्त्री वर्ग आसानी से देखने को मिल जाता है।सादर
Comment by Rahila on June 5, 2017 at 3:28pm
शुक्रिया आदरणीय उस्मानी साहब!सादर
Comment by Rahila on June 5, 2017 at 1:54pm
शुक्रिया प्रिय दीदी!आपका सवाल की स्त्रियां क्यों सब सह जाती हैं।इसका जबाब स्त्री होने के नाते आप और हम बखूबी जानते हैं।सामाजिक ढांचा ही इस तरह का है कि एक तरफ कुआँ एक तरफ खाई ।बोलो कहाँ जाएं?
Comment by Rahila on June 5, 2017 at 1:52pm
शुक्रिया आदरणीय सुशील सर जी! रचना की सराहना हेतु ।सादर।
Comment by Rahila on June 5, 2017 at 1:24pm
आदरणीय महेंद्र सर जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ। कोशिश करूंगी सुधार की।सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 3, 2017 at 6:55pm

वही भारतीय नारी , पति के हर गुनाह माफ़ करती . पर अब जma ना बदल रहा है  वह पति को गर सजा नहीं देती तो अपना रास्ता अवश्य बदल देती है . bahut badhiyaa prastuti  aadarneeyaa 

 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 3, 2017 at 1:53pm
बेहतरीन कटाक्षपूर्ण रचना हेतु हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय राहिला जी।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 3, 2017 at 7:07am

आदरणीया राहिला जी घरेलु हिंसा पर यह लघुकथा आपकी बहुत ही सुंदर हुई है ,कितना कुछ सह जाती है औरते पर क्यों ! हार्दिक बधाई आपको.

Comment by Rahila on June 2, 2017 at 8:34pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सर जी!सादर
Comment by Rahila on June 2, 2017 at 8:29pm
बहुत शुक्रियाआदरणीय आरिफ साहब!मैं समझ रही हूं आपका इशारा लेकिन मुझे लगता है पहले हिदायत से काम बनाना चाहिए फिर सेकने का विकल्प तो है ही।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
13 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service