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***मेरा कसूर ***(कविता)राहिला

माँ! ये तुमने क्या किया?
एक तुम ही तो थीं अपनी
और तुमने ही मुँह मोड़ लिया।
मेरे आगमन की सूचना से,
माना तुम निराश थीं।
पर इतना क्रूर निर्णय लोगी,
इसकी मुझे ना आस थी।
जब ये भयानक विचार आया
तुम्हारे मन में।
बड़ा असुरक्षित महसूस किया
मैंने तेरे तन में।
जब अनजाने हत्यार ने ,
मुझपर प्रहार किया था।
माँ! ,भय से मैंने तेरी ,
कोख को थाम लिया था।
पर कब तक उस दानव से ,
मैं खुद को बचा सकती थी।
प्रयत्न किया उतना मां!,
जितनी मुझमें शक्ति थी।
पर बड़ी निर्दयता से ,
मेरा अंग-अंग काटा गया।
पीड़ा से मैंने तुम्हें ,
फिरअंतिम बार पुकारा था।
तुम बेसुध सी पड़ी,
आवाज न मेरी सुन सकी।
हुआ क्यों ऐसा साथ मेरे,
ना मैं कभी समझ सकी।
बस स्वप्न में आकर तुमसे ,
इतना ही मुझे पूछना था।
मिली सजा जो मुझको माँ!
इसमें मेरा कसूर क्या था?

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 7:38pm
बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया राहिला जी |हार्दिक बधाई |
Comment by Mohammed Arif on May 27, 2017 at 9:34pm
आदरणीया राहिला जी आदाब,बेटी संवेदना से भरपूर कविता के लिए बधाई स्वीकार करें । यह कविता छंदबद्ध होती तो और ज़्यादा प्रभावोत्पादक बन सकती थी ।

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