आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव ji
मुह्तरम जनाब तेज वीर साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा
के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ---
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।
दृष्टि भ्रम
पार्क के दूसरे कोने में बैठे एक बूढ़े व्यक्ति को तीनो लेखक काफी देर से पहचानने का प्रयास कर रहे थेII मैले कुचैले कपड़े, बिखरे हुए बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और झुकी हुई पीठ. बुढापे की झुर्रियों ने हालाकि चेहरे को ढक रखा था, लेकिन उनमे से एक ने आखिर उसे पहचान ही लिया:
"अरे, यह तो हमारे गुरु आनन्द जी हैं।“ “उसके मुँह ने निकला, और वे तीनो उसकी तरफ बढ़ेI
अपने ज़माने के जाने माने साहित्यकार आनन्द जी लिए नवोदितों का मार्गदर्शन करना जीवन का एकमात्र उद्देश्य था. असंख्य नवोदित ने लेखन की बारीकियाँ इन्हीं से सीखीं थी। iइन्होंने प्रण लिया था कि जब तक उसके सभी शिष्य अपनी अपनी विधा में नाम नही कमा लेते वे चैन से नहीं बैठेंगेII न जाने फिर ऐसा क्या हुआ कि वे अचानक अज्ञातवास में चले गएI
"अरे गुरु जी कहाँ थे आप इतने साल?” तीनो ने बारी बारी उनके पाँव छूते हुए सवालों की झड़ी लगा दी” आपकी ये हालत? चहरे पर इतनी उदासी, आप ठीक तो हैं?“
"अरे आओ आओ,I कैसे हो तुम सब? ये बताओ, तुम्हारे लेखन में क्या नई ताज़ी है?” आनन्द जी ने मुस्कुराकर हुए उनकी बात काटते हुए कहाI
“मेरा उपन्यास कॉलेज से सिलेबस में शामिल हो गया है गुरु जीI” जोशीले स्वर ने उत्तर मिलाI
“मेरे कथा संग्रह को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला हैI” दूसरे ने गर्वीले स्वर में अपनी उप्लाब्धि बताई.
“मेरी लिखी ग़ज़लें रेडिओ टीवी पर हर रोज़ प्रसारित होती हैंI” यह तीसरे का उत्तर थाI
“वाह वाहI, सुनकर मन तृप्त हो गयाI” निर्मल जी की बूढी आँखें जगमगा उठींI
“यह सब केवल आपकी प्रेरणा और हम पर की गई मेहनत का नतीजा हैII”
“एक बात सच सच बताओ सबI. तुमने अपनी अपनी विधा में और कितनो को तैयार किया है?” अपने हाथों से रोपित बीजों को लहलहाते पौधे बनते देख निर्मल जी ने हर्षित स्वर में पूछा तो हर तरफ एकदम चुप्पी छा गईI
तीनो मित्रों को बगलें झांकते हुए देख निर्मल जी के चेहरे से प्रसन्नता के भाव गायब होने लगेI वे कुर्सी से उठ खड़े हुए, और बाहर जाने वाले दरवाज़े की तरफ बढ़ते हुए बुदबुदाए:
“शायद मैंने ही इनसे बहुत ज़्यादा उम्मीदें लगा ली थींI”
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीया कल्पना जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है. एक गुरु सदैव शिष्य से ऐसी ही आशा रखता है कि वह ज्ञान के प्रकाश का प्रसार करेगा. इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई. यह भी अवश्य है कि लघुकथा तनिक कसावट और वर्तनी दोष से मुक्ति चाहती है. सादर
जी आप संकलन आने के बाद आदरणीय योगराज सर से संशोधन हेतु निवेदन कीजियेगा. आपको पुनः एक शानदार कथानक के चयन हेतु हार्दिक बधाई. सादर
सच है जो शिक्षा गुरु ने मशाल की तरह एक हाथ से दूसरे हाथ में थमाने हेतु जलाई थी। वह उन्हें बुझी हुई मिली तो दर्द होना स्वाभाविक है। अच्छी कथा हेतु बधाई आ. कल्पना जी!
धन्यवाद आदरणीय ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |