For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मंजिल की चाह ने हमें रस्ते पे ला दिया (ग़ज़ल)

221 2121 1221 212

किसने मेरी उदासी पे ये क़ह्र ढा दिया
इक पल को मेरे लब पे तबस्सुम सजा दिया

तन्हाइयां, उदासियां, हैरत में पड़ गयीं
मुश्किल घड़ी जब आई तो मैं मुस्कुरा दिया

यूं सोचने पे रस्ते भी दुश्वार लगते थे
चलने लगे, पहाड़ों भी ने रास्ता दिया

हद से ज़ियादा बढ़ने लगा चाँद का ग़रूर
क़ुदरत को ग़ुस्सा आया तो धब्बा लगा दिया

मुद्दत हुई अंधेरों से टकरा रहा है वो
किसका है जाने मुन्तज़िर इक काँपता दिया

घर से निकल के आज ये एहसास होता है
मंज़िल की चाह ने हमें रस्ते पे ला दिया

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 548

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जयनित कुमार मेहता on December 29, 2016 at 6:44am

आदरणीय मिथिलेश जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपको।

आपने ठीक ही कहा, अब से मंच को पर्याप्त समय देने की चेष्टा करूंगा।

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 27, 2016 at 10:21pm

आदरणीय जयनित जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं. एक लम्बे अंतराल के बाद मंच पर सक्रीय हुआ हूँ. इसलिए जो कुछ छूट गया है, उसका पाठ शुरू किया. इसी क्रम में आपकी ग़ज़ल पर आपका प्रत्युत्तर आया तो इसे ही पढ़ने लग गया. सोचा आपने अन्य रचनाकारों को उनकी प्रस्तुतियों पर क्या प्रतिक्रियाएं दी हैं, वह भी देखता चलूँ. लेकिन आपने 17 सितम्बर 2016 को आखिरी बार किसी रचनाकार की प्रस्तुति पर प्रतिक्रिया दी थी, उसके बाद तीन माह से भी अधिक समय से संभवतः आपने किसी प्रस्तुति को इस योग्य नहीं माना. अवश्य ही मैं गलत सोच रहा हूँ, आप व्यस्त होंगे. लेकिन आपने इस दौरान कुल दस गज़लें पोस्ट की हैं, जिस पर मंच के आदरणीय सदस्यों ने पूरी शिद्दत से प्रतिक्रियाएं दी हैं. 

इतना कहने से मेरा आशय सिर्फ इतना है आदरणीय, कि जैसे आप अपनी प्रस्तुतियों पर मंच के सदस्यों की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा करते हैं वैसे ही अन्यान्य रचनाकार भी अपनी प्रस्तुतियों पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करते है. अतः निवेदन है कि अपनी अमूल्य प्रतिक्रियाओं से मंच को समृद्ध कीजिये. सादर 

Comment by जयनित कुमार मेहता on December 27, 2016 at 8:49pm

आदरणीय समर कबीर जी, आपके मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभारी हूँ। आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा। सादर।।

Comment by नाथ सोनांचली on December 20, 2016 at 2:51pm
आदरणीय जयनित मेहता जी सादर अभिवादन, आपने उम्दा गजल कहीं और आद0 समर कबीर साहब की बात एक दुरुस्त है। आपको बधाई
Comment by Mahendra Kumar on December 18, 2016 at 10:36am
आदरणीय जयनित जी, बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने। हार्दिक बधाई। आदरणीय समर सर की सलाह एकदम दुरुस्त है। सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 16, 2016 at 11:55pm
आदरणीय जयनित जी बहुत ही शानदार रचना है हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Samar kabeer on December 16, 2016 at 8:13pm
तीसरे शैर का सानी मिसरा यूँ किया जा सकता है:-
"जब चल पड़े पहाड़ों ने भी रास्ता दिया"
चौथा शैर यूँ कर सकते हैं:-
"मगरूर हो न जाये कहीं चाँद,इसलिये
क़ुदरत ने उसमे दिखिये धब्बा लगा दिया"
आपसे फोन पर बात करने के बाद ये सुझाव दे रहा हूँ ।
Comment by Samar kabeer on December 16, 2016 at 4:50pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
तीसरे शैर का सानी मिसरा बहुत कमजोर है।
चौथा शैर मफ़हूम के एतिबार से मुह्मिल है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ओबीओ द्वारा इस सफल आयोजन की हार्दिक बधाई।"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
yesterday
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service