For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आ भी जाओ परी- पंकज द्वारा गीत

तेरे दीदार को ये निगाहें मेरी
कब से व्याकुल हैं विह्वल ये धड़कन मेरी
आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।

आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।।

कितने अरमान मन में सँजोये हूँ मैं
नींद तेरे लिए ही तो खोए हूँ मैं

इस अँधेरे नगर में बिछे चाँदनी
घोल दे ज़िन्दगी में मधुर रागिनी

राग पायल की छम छम सुना सांवरी
आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।

आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।।1।।

तेरे काजल सजे दोनों चंचल नयन
फूल सा खूबरू तेरा कोमल बदन

सोचता हूँ तुम्हें मुस्कुराता है मन
स्वप्न में आओ तो जगमगाता चमन

मेरी बाहों के घर में बसो सुंदरी
आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।

आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।।2।।

इससे पहले की हसरत बिखरने लगे
कल्पना की ज़मीं भी धसकने लगे

साँस लेने की आदत न छोड़ूँ कहीं
थाम लो धड़कनों को हसीं नाज़नीं

प्यास सदियों की हर लो सुधा गागरी
आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।

आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।।3।।


मौलिक अप्रकाशित

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 8:30pm
आदरणीय गोपाल सर सादर प्रणाम और बहुत बहुत आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 8:30pm
आदरणीय मिथिलेश सर सुस्वागतम।

सादर धन्यवाद
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2016 at 7:44pm

पंकज जी आपके गीत में सरगम भी  है  संगीत भी है . बधाई आपको .

Comment by Samar kabeer on November 22, 2016 at 10:09pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,आपको मंच पर सक्रीय देख कर कितनी ख़ुशी हो रही है,बयान नहीं कर सकता ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 22, 2016 at 6:03pm

तेरे दीदार को ये निगाहें मेरी,
कब से व्याकुल हैं विह्वल ये धड़कन मेरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।

कितने अरमान मन में सँजोये हूँ मैं
नींद तेरे लिए ही तो खोए हूँ मैं
इस अँधेरे नगर में बिछे चाँदनी
घोल दे ज़िन्दगी में मधुर रागिनी


राग पायल की छम छम सुना सांवरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।

तेरे काजल सजे दोनों चंचल नयन
फूल सा खूबरू तेरा कोमल बदन
सोचता हूँ तुम्हें मुस्कुराता है मन
स्वप्न में आओ तो जगमगाता चमन

मेरी बाहों के घर में बसो सुंदरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।

इससे पहले की हसरत बिखरने लगे
कल्पना की ज़मीं भी धसकने लगे
साँस लेने की आदत न छोड़ूँ कहीं
थाम लो धड़कनों को हसीं नाज़नीं

प्यास सदियों की हर लो सुधा गागरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।

आदरणीय पंकज जी, बहुत सुन्दर गीत लिखा है आपने. पढ़कर मुग्ध हो गया. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

वैसे टेक की पंक्ति को बार बार लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योकिं वो पाठक गुनगुनाते हुए खुद गा लेता है. 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 21, 2016 at 5:15pm
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, गल्ती को अभी सुधारता हूँ।
Comment by Samar kabeer on November 21, 2016 at 5:11pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,बहुत सुंदर गीत लिखा है,बधाई स्वीकार हो ।
16वीं और 17वीं पंक्ति में 'तेरे'और तुम्हारे'देखिये ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service