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रेट का टैग लगा रिश्तों का बाज़ार मिला- पंकज द्वारा ग़ज़ल

2122 1122 2122 112

ढूँढने प्रीत चला स्वार्थ का उपहार मिला
रेट का टैग लगा रिश्तों का बाज़ार मिला

आदमीयत भी दिखावे की कोई चीज़ हुई
कैमरा ऑन था, दुखिया को बहुत प्यार मिला

न्याय के घर में भी पैसे की खनक हावी हुई
नाचता नोट की गड्डी पे ख़बरदार/जिरहदार मिला

ये अलग बात है तुम ज़िद पे अड़े हो तो मिलो
पर मुझे भूल नहीं पाया जो इक बार मिला

देख दर्पण में हक़ीक़त को चुराता है नज़र
लोभ की कीच में पंकज भी तो बीमार मिला

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 8:32pm
आदरणीय मिथिलेश सर सादर प्रणाम।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 8:31pm
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 8:31pm
आदरणीय गिरिराज सर सादर आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 22, 2016 at 5:52pm

आदरणीय पंकज जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं. सादर 

Comment by Samar kabeer on November 22, 2016 at 2:53pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 2:02pm

आदरणीय पंकज भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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