For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फोर ईडियट्स (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

असफल प्रेम-विवाह ने और आधुनिक जीवन जीने की ज़िद ने मधु को आज जिस मुकाम पर छोड़ा था, वहां रईस पति और दो सुंदर सन्तानों के बावजूद केवल नीरसता थी, अकेलापन था। उम्र के पाँचवें दशक में उसे महसूस हुआ कि अपने माँ-बाप के अरमानों का गला घोंटना और माँ-बाप बनने पर अपनी सन्तानों के ज़रिये अपने अरमान पूरे करने की कोशिश के दूरगामी परिणाम क्या होते हैं। पति धन-दौलत के पीछे भागता रहा। बेटा बाप के अरमान पूरे करने के लिए अपनी रुचियों के विरुद्ध व्यर्थ की शैक्षणिक डिग्रियां हासिल करके बस जिम जाकर शरीर-सौष्ठव प्रतियोगी बनकर रह गया था। स्वयं ब्यूटी-पार्लर चलाकर किसी तरह अपने अरमान पूरे करते हुए मधु ने अपनी बेटी को ब्यूटिशयन का पाठ्यक्रम क्या कराया कि वह एक अलग ही दिशा पर चल पड़ी। दोनों सुंदर सन्तानों को पथभ्रष्ट करने में माँ-बाप का भी तो दोष रहा था।

"मम्मा, तुमने तो अपने ही हाथों अपनी ज़िन्दगी बरबाद कर ली थी, मुझे मेरे हिसाब से जी लेने दो, कोई रोक-टोक, नुक्ता-चीनी मुझे बरदाश्त नहीं! शादी की तो अभी बात ही मत करना!" जवान बेटी के ये ताने सुने या बेटे के ये शब्द; "बाप ने तो बस पैसे फैंक कर मुझे अपनी मनचाही डिग्रियां दिलवादीं, मैं तो कुछ और ही बनना चाहता था!" कभी पति से कोई चर्चा करने की कोशिश करती, तो यही सुनने को मिलता; "आज की दुनिया में पैसा ही सब कुछ है, किस बात की कमी है घर में, सबके लिए सब कुछ तो कर दिया!"

परिवार में चार सदस्य, चार तरह की जीवन शैलियाँ और चार तरह के सोच रह गए थे! रिश्ते केवल नाम मात्र के रह गए थे। मधु कभी फोटो-एलबम देखकर, तो कभी आइना देख कर अपने अतीत और वर्तमान का बस मूल्यांकन करती रहती। वह सच्चाई के धरातल पर थी।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 508

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2016 at 8:52pm
रचना पर समय देकर अपनी राय से वाक़िफ़ कराने व स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीया नीता कसार जी व आदरणीय विजय निकोरे जी।
Comment by vijay nikore on October 13, 2016 at 3:25pm

यथार्थपूर्ण लघु कथा बहुत अच्छी लगी। बधाई।

Comment by Nita Kasar on October 12, 2016 at 1:13pm
एेसे माता पिता भी होते है जो हर सुविधा उपलब्ध कराकर सोचते है उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियों की इतिश्री कर ली पर ये गलत है दौलत ही सब कुछ नही होती है ।प्रेम विवाह की इन्तहां एेसी भी ।बधाई आपको आद०शेख शाहिद उस्मानी जी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 12, 2016 at 9:08am
रचना पर समय देकर इसके भावों की गहराई तक जाकर अनुमोदन करने व प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया अपर्णा शर्मा जी।
Comment by Arpana Sharma on October 11, 2016 at 11:18pm
आदरणीय श्रीमान् शेख श़हजाद उस्मानी जी- आजकल अनेकों घरों में यही कहानी है। बहुत गहन भावार्थ लिए और प्रशनचिन्ह उठाती एक यथार्थ परक लघुकथा के लिये बहुत बधाई ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 11, 2016 at 8:24pm
अपनी त्वरित प्रतिक्रिया द्वारा विचार साझा करते हुए रचना का अनुमोदन करने व स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब सुरेश कुमार 'कल्याण' जी।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 11, 2016 at 11:16am
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी साहब बिल्कुल यथार्थ चित्रण है आज के वक्त का। आधुनिकता के युग में यही तो हो रहा है । सुन्दर एवं सारगर्भित रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service