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मुर्दों के सम्प्रदाय (लघुकथा)

"पापा, हम इस दुकान से ही मटन क्यों लेते हैं? हमारे घर के पास वाली दुकान से क्यों नहीं?" बेटे ने कसाई की दुकान से बाहर निकलते ही अपने पिता से सवाल किया|
पिता ने बड़ी संजीदगी से उत्तर दिया, "क्योंकि हम हिन्दू हैं, हम झटके का माँस खाते हैं और घर के पास वाली दुकान हलाल की है, वहां का माँस मुसलमान खाते हैं|"
"लेकिन पापा, दोनों दुकानों में क्या अंतर है?" अब बेटे के स्वर में और भी अधिक जिज्ञासा थी|
"बकरे को काटने के तरीके का अंतर है..." पिता ने ऐसे बताया जैसे वह आगे कुछ बताना ही नहीं चाह रहा हो, परन्तु बेटा कुछ समझ गया, और उसने कहा,
"अच्छा! जैसे मरने के बाद हिन्दू को जलाते हैं और मुसलमान को जमीन में दफनाते हैं, वैसे ही ना!"
बेटे ने समझदारी वाली बात कही तो पिता ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया, "हाँ बेटे, बिलकुल वैसे ही|"
"तो पापा, यह कैसे पता चलता है कि बकरा हिन्दू है या मुसलमान?"
यह प्रश्न सुन पिता चौंक गया, जगह-जगह पर दी जाने वाली अलगाव की शिक्षा को याद कर उसके चेहरे पर गंभीरता सी आ गयी और उसने कहा,
"बकरा गंवार सा जानवर होता है, इसलिए उसे हिन्दू कसाई अपने तरीके से काटता है और मुसलमान कसाई अपने तरीके से| सच तो यह है कि कटने के बाद जब बकरा मरता है उसके बाद ही हिन्दू या मुसलमान बनता है... जीते-जी नहीं|"
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2016 at 10:46pm

सच तो यह है कि कटने के बाद जब बकरा मरता है उसके बाद ही हिन्दू या मुसलमान बनता है... जीते-जी नहीं|"

वाह आदरणीय चंद्रेश भैया | गज़ब की आपकी सोच है | बधाई स्वीकारें |
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 17, 2016 at 10:03am

// बकरा गंवार सा जानवर होता है, इसलिए उसे हिन्दू कसाई अपने तरीके से काटता है और मुसलमान कसाई अपने तरीके से

सच तो यह है कि कटने के बाद जब बकरा मरता है उसके बाद ही हिन्दू या मुसलमान बनता है... जीते-जी नहीं |"
रचना  के  अंत  की  ये पंक्तिया पूरी  रचना   को  जो  प्रभाव दे  गयी  वो  बेमिसाल  है भाई  चंद्रेश  जी ,,,,,

इस लाजवाब  रचना  के लिए  हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय चंद्रेश जी... सादर

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 20, 2016 at 7:00pm

रचना को पसंद करने और टिप्पणी द्वारा मेरी हौसला अफज़ाई हेतु सादर आभार आदरणीय राम अशेरी जी

Comment by Ram Ashery on June 17, 2016 at 7:25am

इस प्रेरणा दायी रचना के लिए आपको बधाई 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 15, 2016 at 8:20pm

रचना को पसंद करने और शुभकामनाओं हेतु सादर आभार आदरणीया कांता रॉय जी एवं आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 14, 2016 at 2:52pm
इस बेहतरीन कृति को फीचर-ब्लोग-पोस्ट के रूप में चयनित किए जाने पर तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय चन्द्रेश कुमार छतलानी साहब।
Comment by kanta roy on June 14, 2016 at 12:17pm

सच तो यह है कि कटने के बाद जब बकरा मरता है उसके बाद ही हिन्दू या मुसलमान बनता है... जीते-जी नहीं|"------अद्भुत  कथ्य सामने  आया  है  यहाँ . गज़ब  की  लघुकथा  है  ये  आपकी  आदरणीय  चंद्रेश  जी  .  ह्रदय  से  बधाई  प्रेषित  है  . 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 11, 2016 at 3:48pm
आदरणीया राहिला जी, आदरणीय शेख शहज़ादउस्मानी जी साहब, आदरणीय सुशील शर्मा जी, आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी, आदरणीया नीता कसार जी, आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर, आदरणीय मदनलाल श्रीमाली जी सर, आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी, आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सर, आप सभी का हृदय से आभारी हूँ, लघुकथा का यह प्रयास आपको ठीक लगा, आप सभी की स्नेहसिक्त टिप्पणी से मनोबल बहुत बढ़ा है, निवेदन है कि ऐसे ही स्नेह बनाये रखें| सादर,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2016 at 12:22am

हाल फिलहाल में मेरी पढ़ी सर्वश्रेष्ठ रचना !  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय चंद्रेशजी, इस उच्चकोटि की रचना केलिए !

शुभ-शुभ

Comment by pratibha pande on June 8, 2016 at 8:14am

//"बकरा गंवार सा जानवर होता है, इसलिए उसे हिन्दू कसाई अपने तरीके से काटता है और मुसलमान कसाई अपने तरीके से|// इस पंक्ति में निहित तंज  बहुत तीखा है ,  धर्म के नाम पर ज़हर फैलाने वाले कसाई अपने अपने तरीक़े से भोली जनता को काटकर अपनी दुकान चला रहे हैं ,   बहुत बढ़िया रचना ,हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय चंद्रेश जी  

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