आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आभार आदरणिया महिमा जी
बढ़िया रचना आदरणीया नयना जी | हार्दिक बधाई |
धन्यवाद कल्पना
एक स्त्री के मनोभावों की कथा ।
आदरणीया नयना (आरती) जी, प्रदत्त शीर्षक के हिसाब से अच्छे कथानक को लेकर चलती इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ. अच्छा प्रयास हुआ है. टंकण त्रुटियों के प्रति तनिक संवेदनशील रहें.
सादर
आ. सौरभ जी आपसे हमेशा उत्साहवर्धन प्राप्त होता है.इस हेतु धन्यवाद. कल मेरी पहली रचना पोस्ट हो जाए इस चक्कर में टंकण त्रुटियाँ नही देखी और बाद मे दिए गये समय(१५ मिनट) मे शायद नेट की समस्या थी जो ३-४ बार सुधारने के बाद भी ठीक नहीं हो पा रही थी. संकलन मे इन्हें ठीक कर लूँगी.आप की सदाशयता सदा बनी रही.
ग़लतफ़हमी
मृत्युशैया पर पड़े महापंडित रावण ने विभीषण की तरफ घृणा से देखते हुए कहा,
"कुलघाती तुमने दुश्मन के साथ षड्यंत्र रच मुझे धराशाही कर दिया".
" भैया मैंने सिर्फ अपना फर्ज निभाया है",
स्वर्ण नगरी का भावी अधिपति ने विनम्रता से करबद्ध उत्तर दिया.
"रे कुल नाशक, आने वाली पीढ़ियाँ तुम्हे माफ़ नहीं करेगी और अपने पुत्र का नाम कभी कोई विभीषण नहीं रखेगा",
यमद्वार उन्मुख दशानन ने अनुज को कोसते हुए कहा.
"मैंने देश हित में श्री राम से संधि किया न कि षड्यंत्र रचा. मुझे कुल नाशक सुनना मंजूर है पर "देश-द्रोही" कदापि नहीं. मैंने भाई-भतीजावाद से परे देशहित का सोचा. मेरा देश अक्षुण रह गया और देवाशीष पा अमरत्व भी पा गया ",
सजल नयनों से विभीषण ने अपनी आखरी सफाई देनी चाही परन्तु तब तक स्वार्थ और अहंकार ने महापंडित की सारी पंडिताई को धता बताते हुए प्राणों का हरण कर लिया था. अग्रज की निष्प्राण-ठठरी सन्मुख विभीषण किमकर्तव्यविमूढ़ हो काल की गति समक्ष अबूझ ही रह गए.
विचार मौलिक और अप्रकाशित
साभार रामायण
धन्यवाद राहिला जी , आपको रचना पसंद आई.
आ.रीता जी सुंदर रचना. बस एक जगह मुझे कुछ खटक रहा " संधी" स्त्रीलिंगी शब्द है तो यहा वाक्य विन्यास "मैंने देश हित में श्री राम से संधि कि है न कि षड्यंत्र रचा." ज्यादा उचित रहेगा.वैसे ये मेरा व्यक्तिगत मत है.बधाई आपको पौरणिक प्रसंग के साथ सार्थक रचना के लिए
आदरणीया आप बिलकुल सही बोल रही, मैं इसे सुधार लुंगी. गलतियों की तरफ इंगित करने हेतु धन्यवाद.
/मुझे कुल नाशक सुनना मंजूर है पर "देश-द्रोही" कदापि नहीं./ बहुत ही तीक्ष्ण व पैनी बात कह गई अपनी कथा के माध्यम से आदरणीय रीता जी । थोड़ी देर में उपस्िथत होता हूं, सादर ।
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