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जीवन के हर मोड़ पर
हर मुश्किल के साथ
जब अपने बिछुड़ते गये
हर अँधेरे की दस्तक से
तथाकथित सच्चे मित्र
साथ छोड़ते गये
जीवन की नितांत
एकाकी सड़क पर
आज भी ‘वह’ लगातार
बिना थके, बिना रुके
मेरे साथ चली आ रही है
न सुख की आस
न आनंद की प्यास
न अभिलाषा प्रतिदान की
न लालसा सम्मान की
बगैर किसी शिकायत
एक निश्छल साथी
अविच्छिन्न सहचरी
मेरी परछाई I

तनूजा उप्रेती ,11.05.2016

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Tanuja Upreti on May 15, 2016 at 8:22am
आदरणीय रामबली जी व रामआसरे जी आपका बहुत बहुत आभार
Comment by Ram Ashery on May 15, 2016 at 7:28am

अति सुंदर बहुत बहुत बधाई हो 

Comment by Tanuja Upreti on May 12, 2016 at 10:39am

पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विजय जी ,मेरा अनुमान है पूर्ण अन्धेरा होने पर भी परछाई कुछ देर के लिए हम में ही समा जाती है हमारा साथ फिर भी नहीं छोड़तीI

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 12, 2016 at 10:28am
बहुत सुन्दर प्रस्तुति , परछाईं कभी साथ नहीं छोड़ती बशर्ते आप पर कुछ रौशनी पड़ती रहे , किसी भी तरफ से, या यूँ कहें की परछाईं साथ है तो आप पर कहीं न कहीं से रौशनी पड़ रही है। रौशनी पड़ रही माने उम्मीद। बधाई इस सारगर्भित रचना के लिए। आदरणीय सयशरी तनुजा उप्रेती जी , सादर।
Comment by Tanuja Upreti on May 12, 2016 at 10:08am

बहुत बहुत आभार आ० रामबली जी 

Comment by रामबली गुप्ता on May 11, 2016 at 4:02pm
बहुत खूब आद.तनुजा जी। शानदार प्रस्तुति

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