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हमें कहाँ हर वक्त याद रहता है मज़हब अपना

सज़दे में सर झुकता है मेरा
राह चलते जहाँभी दरगाह मिली
तुम्हारे मन भी तो इज़्ज़त है
मेरे शंकर और मेरे राम की
जब उर्स होता है तो मैं भी
आती हूँ चादर चढ़ाने को
दशहरे में तुम भी जाते हो
रावण जलाने को
हमें कहाँ हर वक्त याद रहता है
मज़हब अपना
हाँ सियासत नहीं भूलती
मैं हिन्दू तू मुसलमान है
अब ये अलग बात है कि
मैं अगर इज़्ज़त हूँ
अपने भारत की
तो तू भी 
हिन्द का सम्मान है ।
तनूजा उप्रेती

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Tanuja Upreti on May 27, 2016 at 11:59am

रचना पसंद करने के लिए  बहुत बहुत आभार प्रतिभा जी 

Comment by pratibha pande on May 26, 2016 at 7:13pm

हमें कहाँ हर वक्त याद रहता है 
मज़हब अपना
हाँ सियासत नहीं भूलती 
मैं हिन्दू तू मुसलमान है....क्यों कि इसी से उनका वजूद है ,

बहुत सशक्त अभिव्यक्ति है आपकी ,  हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको इस रचना पर आदरणीया तनूजा जी  

कृपया ध्यान दे...

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