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2122 2122 212
वो जो तेरे काम का होता नहीं
उससे तेरा वास्ता होता नहीं

राह कोई गर मिली होती मुझे
अपने अंदर गुम हुआ होता नहीं

अपने लोगों में रहा होता जो मै
तो सरे महफ़िल लुटा होता नहीं

लग रहा है हादसों को देखकर
यूँ ही कोई हादसा होता नहीं

खुद पे काबू रखना मुझको आ गया
रात भर अब ‘जागना’ होता नहीं

चन्द शर्तों से बँधा है आदमी
अब कोई दिल से जुड़ा होता नहीं

वो सफ़र है ज़िन्दगी जिसमें ‘शकूर’
वापसी का रास्ता होता नहीं

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2016 at 2:05pm

आदरणीय शिज्जू जी बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढी ..इस शानदार रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Ram Ashery on May 18, 2016 at 12:22pm

अति सुंदर भाव गर्भित रचना के लिए आपको सहृदय बधाई स्वीकार हो 

Comment by vijay nikore on April 26, 2016 at 1:47pm

//लग रहा है हादसों को देखकर
यूँ ही कोई हादसा होता नहीं// .......... वाह.. वाह ... वाह

खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई

Comment by Sushil Sarna on April 19, 2016 at 10:04pm

वो जो तेरे काम का होता नहीं
उससे तेरा वास्ता होता नहीं

राह कोई गर मिली होती मुझे
अपने अंदर गुम हुआ होता नहीं

वाह आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब अहसासों को लफ़्ज़ों में बाँधने का आपका गज़ब का अंदाज़ है। इन दिलकश शे'रों से लबरेज़ ग़ज़ल के पेशकश पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।

Comment by narendrasinh chauhan on April 19, 2016 at 5:12pm

खूब सुन्दर रचना 

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