आदरणीय लघुकथा प्रेमियो,
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सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय विनय कुमार जी
बहुत खूब रचना कही है आदरणीय गणेश जी 'बागी' सर, इसमें पिता के समझाने का तरीका भी बहुत अच्छा था | इस लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें|
आदरणीय चंद्रेश जी, आपकी प्रतिक्रिया लघुकथा को सम्मानित कर रही है, बहुत बहुत आभार.
प्रणाम आदरणीय समर साहब, आपकी सराहना युक्त टिप्पणी इस प्रस्तुति को सम्मानित कर गयी, बहुत बहुत आभार.
आदरणीय बागी सर, इस जमीन को आपने बिलकुल नया और सकारात्मक रंग दे दिया. बहुत ही शानदार लघुकथा लिखी है आपने. बहुत बहुत बधाई. सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश भाई, आपकी प्रतिक्रिया मुग्धकारी है.
सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय विजय शंकर जी.
लघुकथा- फायदा
अमेरिका से छोटे बेटे का वीडियोकाल आते ही अरुण की रुलाई फुट पड़ी. मानो कह रहे हो कि बेटा बैंक का कर्ज तो सह लूँगा यह शारीरिक, मानसिक दर्द सहा नहीं जाता है. उन के चहरे पर खींची दर्द की लकीर को उस ने देख लिया था.
“ पापा ! रो रहे हो ?” विकास ने कहा तो अरुण ने पानी भरे पेट से हाथ हटा लिया, “ नहीं विकास. यह तो ख़ुशी के आंसू है.”
कुछ देर दोनों एकदूसरे के दर्द को महसूस करते रहे, “ तेरी अमेरिका में इंजीनियरिंग की सर्विस लग गई हैं, बड़ी ख़ुशी हुई, ” वे बड़ी मुश्किल से बोल पाए थे. वे कैसे बताते की बेटा तेरे जाने के इंतजाम में इतना कर्ज हो गया कि उस कर्ज के बोझ और तेरी याद भुलाने के लिए दारू का सहारा लेना पड़ा. फिर कब पीलिया हुआ मालूम ही नहीं पड़ा. इस पीलिए ने लीवर बिगाड़ दिया. लीवर ने किडनी ख़राब कर दी.
इस के बाद वे दर्द से बोल नहीं पाए.
“ ले ! निकुंज से बात कर,” कहते हुए मोबाइल निकुंज को दे दिया. फिर बिस्तर पर उलटे गिर कर दर्द से छटपटाते हुए रोने लगे, “ हे भगवान ! अब दर्द सहा नहीं जाता. उठा ले.”
निकुंज पापा का दर्द से छटपटाते हुए देख नहीं पाया. मोबाइल को पिता की तरफ कर दिया ,” पापा ! रातदिन ऐसे ही तड़फते रहते हैं विकास. यह देख .”
“ डॉ ने क्या बताया है ?” अपने आंसू रोक कर विकास ने बड़ी मुश्किल से पूछा.
“ डॉ का कहना है कि लीवर और किडनी ख़राब हो चुकी है. बस ऐसे ही मशीन के सहारे जीएंगे.”
“ कब तक ?”
“ जबतक पैसे उधार मिल रहे हैं और मशीन चल रही है तब तक.” निकुंज न कहा , “ हमें तो कुछ समझ नहीं आ रहा है. तू ही बता, क्या करु ?”
“ पिताजी की अस्पताल से छुट्टी करवा लो. शायद उन्हें दर्द से मुक्ति मिल जाए. और हमें भी ...” कहते हुए विकास ने आँखों से आंसू पौछ कर मोबाइल बंद कर दिया. .
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( मौलिक और अप्रकाशित)
aadrniy bahut hi karunik aur swarthi putr ki katha
kuch kahne ko nahi siway OH!
आदरणीय राजेंदर जी आप का आभार . आप ने लघुकथा पर उपस्थित हो कर मेरा उत्साहवर्धन किया.
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