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गर्म खबरों में अब दम कहां

गर्म हवा की तपिश से
उठे ववंडरों ने
उनकी आँखों में धूल झोंक दी
उनके कपडे भी उड़ा ले गयी
वे नंगा हो गए ॥

मगर .....
गर्म खबरों ने
उनको नंगा नहीं किया
क्योकि .... उन्होनें
नोटों की माला से
अपना शारीर ढक रखा था ॥

अब
गर्म खबरों में
गर्म हवा जैसी ताकत कहां ??

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Comment

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Comment by Admin on June 19, 2010 at 5:55pm
बब्बन जी , एक बार फिर आप की झोली से गरमा गरम और चोट करती रचना निकली है, बधाई,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 18, 2010 at 6:11pm
सुन्दर रचना आपकी, करती गहरी चोट
उनको कोई फर्क ना, जिनकी चमड़ी मोट.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 18, 2010 at 9:33am
मगर .....
गर्म खबरों ने
उनको नंगा नहीं किया
क्योकि .... उन्होनें
नोटों की माला से
अपना शारीर ढक रखा था ॥

बहुत हीं सार्थक कविता लिखे है बब्बन भाई, संपादक जी बिल्कुल सही कहे है की कम शब्दो मे गहरी बात कह दिये है | बधाई कबूल करे बब्बन भाई ,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 18, 2010 at 8:44am
बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन, बबन भाई आनन्द आ गया ये कविता पढ़ कर ! निहायत ही खूबसूरत काव्य अभिव्यक्ति, शब्द कम मगर अर्थ बहुत गहरे, मुबारकबाद देता हूँ आपको I

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