For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार अट्ठावनवाँ आयोजन है.

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  19 फरवरी 2016 दिन शुक्रवार से  20 फरवरी 2016 दिन शनिवार तक

 

इस बार गत अंक में से दो छन्द रखे गये हैं - चौपाई छन्द और सार छन्द.

 

 

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.

 

इन दोनों छन्दों में से किसी एक या दोनों छन्दों में प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द रचना करनी है. 

 

इन छन्दों में से किसी उपयुक्त छन्द पर आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.  

 

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो दोनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.   

 

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

 

चौपाई छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

[प्रस्तुत चित्र ओबीओ सदस्य एवं कार्टूनिस्ट आ. विनय कूल जी के सौजन्य से प्राप्त हुआ है]

सार छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने केलिए यहाँ क्लिक करें 

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

 

********************************************************

 

आयोजन सम्बन्धी नोट :

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 19 फरवरी 2016 दिन से 20 फरवरी 2016 दिन यानि दो दिनों के लिए  रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  5. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  6. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  7. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

 

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

 

विशेष :

यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

 

Views: 12853

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आपके अनुमोदन से प्रयास में सफल होने की प्रसन्नता हुई है, आदरणीय गोपाल नारायनजी. 

हार्दिक धन्यवाद 

बहुत ख़ूब--
//
मिट्टी में मिट्टी का दलना । और भला क्या तन का जलना ?
मूल अर्थ को यदि जानोगे । माया नश्वर है मानोगे ॥ //... प्रकृति चक्र अनुसार जगत के आंगन से देह त्याग कर आत्मा के प्रस्थान का दर्शन समझाते चित्र-विषयांतर्गत बेहतरीन चौपाई-छंद सृजन के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी।
यह भी जाना कि इस छंद में....// पाके//..//ताके// जैसे बोलचाल के शब्द 'पाकर' आदि के स्थान पर मान्य होते हैं।

आदरणीय शेख साहब, चौपाई छन्द वस्तुतः देश में अवहट्ट भाषा के व्यापने के दौर का छन्द है. अतः इसमें देसज शब्दों का सुगढ़ प्रयोग होता है. वस्तुतः आंचलिक भाषाओं में ही इसकी अत्यंत प्रसिद्ध रचनाएँ मिलती हैं. आगे सोलह मात्राओं के गीत  या नवगीत का यही छन्द आधार बन गया.

आपने पाके  और ताके  जैसे शब्दों पर जिस तरह से अचम्भा दिखाया है इसी कारण मैंने  चौपाई की पृष्ठभूमि पर चर्चा करना उचित समझा. दूसरे, ’टुकुर-टुकुर ताकना’ जैसे मुहावरों से परिचित हैं न ? तो फिर इस ताकने के भूत काल के तुक में पाकर को पाके करने में कोई दोष समझ में नहीं आया. 

आपको प्रस्तुति भली लगी, इसके लिए हार्दिक धन्यवाद

अचम्भे जैसा नहीं बल्कि अज्ञानतावश वैसी जिज्ञासा हुई थी, शायद किसी और विधा में किसी सोशल साइट के ग्रुप कमेंट को पढ़कर ग़लतफहमी हुई थी। विस्तार से जानकारी देने व समझाने के लिए सादर बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी।

जगती के आँगन में थक कर । छोड़ चला संसार का चक्कर ॥
जो आया है वो जायेगा । वर्ना जग क्या चल पायेगा ?.........सच कहा है. इसी तरह संसार चलता है.

प्राण रहित यह तन साया भर । तब ही घाट लगी काया भर ॥
इस जगती की ये सच्चाई । अहंकार में समझ न आई ॥.........बिलकुल सत्य झूठ का भान भुलाकर अहंकार कहाँ समझने देता है कुछ.

आदरणीय सौरभ जी  सादर, सभी चौपाइयां अपने रचे जाने के उद्देश्य को पूरा कर रहीं हैं. इस सुंदर सृजन के लिए बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

आपसे मिला अनुमोदन सुखद है, आदरणीय अशोक भाईजी. 

सादर्

एक और अनुपम चमत्कृत प्रस्तुति।
सादर वन्दन श्रद्धेय सौरभ सर।

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सतविन्दरजी

आदरणीय सौरभ भाईजी

धरम देह का भी होता है । फिर तू मानव क्यों रोता है ?..... सच है देह तो ईश्वरीय विधान और नियम धरम से डिग नहीं सकता

पूण्य-पाप सुख-दुख से राहत । देह रहे तब तक ही आफत ॥.....देह ही को सब  कुछ झेलना  और सहना  है जीव तो स्वतंत्र है

इस जगती की ये सच्चाई । अहंकार में समझ न आई ॥........अहंकार ही  बाधक बन   जाता है जीव  जगत और ईश्वर केबीच

ज्ञान देती चौपाई छंद पर मेरी बधाई

अनुमोदन केलिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अखिलेश भाईजी. 

आदरणीय सौरभ सर, आपने चौपाई छंद में बहुत ही सधे हुए पद प्रस्तुत कर हम नव अभ्यासियों के लिए शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया है. ये उत्कृष्ट पद अपने कथ्य और भाव को संप्रेषित  करते हुए पाठक को मुग्ध कर देते है. बात वही पर कहने ढंग उसे विशिष्ट बनता है, यह आपकी प्रस्तुति से समझा जा सकता है-

जगती के आँगन में थक कर । छोड़ चला संसार का चक्कर ॥
जो आया है वो जायेगा । वर्ना जग क्या चल पायेगा ?................... जीवन-चक्र ही जीवन के सतत होने का आधार है. 

समय पूर्ण कर मानव अपना । हुआ अचानक केवल सपना ॥ 
धरम देह का भी होता है । फिर तू मानव क्यों रोता है ?.......... देह का भी धरम होता है .... अद्भुत चरण हुआ है यह.

नहीं भाव से आभासित मुख । दैहिक दैविक भौतिक हर दुख ॥ 
पूण्य-पाप सुख-दुख से राहत । देह रहे तब तक ही आफत ॥............. सही कहा आपने 

प्राण रहित यह तन साया भर । तब ही घाट लगी काया भर ॥ 
इस जगती की ये सच्चाई । अहंकार में समझ न आई ॥................... वाकई इस सत्य को अहंकार में समझ ही नहीं पाते या समझकर भी नासमझ बने रहते है क्योकि अहंकार ज्यादा हावी होता है.

लचक-लचक कर पहुँचे वाहन । लकड़ी जोड़ी बना सिंहासन ॥ 
नियम, क्रियाएँ, कारण कितने । हर मज़हब के कारक जितने ॥............. आँखों के आगे एक चित्र घूम गया...शब्द चित्र बन गया है 

भोर-साँझ के चक्कर पाके । टुकुर-टुकुर सूरज भी ताके ॥ 
सूक्ष्म तरंगें व्याप गयी हैं । परिणतियाँ पर कहाँ नयी हैं ?............ चित्र को शाब्दिक करने के क्रम में सूक्ष्म तरंगों के व्यापने और परिणतियों की वास्तविकता को अभिव्यक्त करती पंक्तियों की भाव दशा आपके रचनाकर्म की असीमता को इंगित करती है.

मिट्टी में मिट्टी का दलना । और भला क्या तन का जलना ? 
मूल अर्थ को यदि जानोगे । माया नश्वर है मानोगे ॥ ................... सही कहा .... यह चौपाई जैसे कथ्य का उपसंहार करती हुई सी है. जिसमें जीवन का पूरा निचोड़ समाहित हो गया है. इस प्रस्तुति हेतु बधाई और आभार भी. सादर नमन 

आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपने चौपाई प्रति सहज चौपाई व्याख्या ही नहीं सप्रसंग व्याख्या कर जैसे मेरे प्रयास को आवाज़ दे दी है.

हार्दिक धन्यवाद इस मुखर अनुमोदन केलिए !

शुभ-शुभ

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
9 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
22 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
Thursday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service