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शोहरत के रंग
जब से निर्देशक ने नई अभिनेत्री सिमरन के सर पर हाथ रखा था शोहरत और कामयाबी जैसे उनके कदम चूमने लगी थी। जो लोग सिमरन का नाम सुनकर ही फिल्म के लिए मना कर देते थे आज उनके अभिनय के लिए मुँहमांगी रकम देने को तैयार थे। आज के इस कार्यक्रम में सिमरन को सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेत्री के पुरूस्कार के लिए चुना गया था। मंच पर आती सिमरन ने अब तक की कामयाब अभिनेत्री माया को देखकर बुरा सा मुंह बनाया।
"हूंह ,मुझे ये अवार्ड देगी? मोस्ट फेल्योर।"
माया ठठाकर हंस पड़ी:
"कुसूर तुम्हारा नहीं सिमरन। शोहरत और दौलत के रंग ही ऐसे हैं कल तक मेरे गुलाम थे आज तेरे।"
मौलिक एवं अप्रकाशित
मोहतरमा उपमा शर्मा साहिबा , शोहरत के रंग से सजी अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई
// शोहरत और दौलत के रंग ही ऐसे हैं कल तक मेरे गुलाम थे आज तेरे।"//
बिलकुल इसी तरह घूमता है ,समय का पहिया।
लघु भी है और कथा भी। बधाई ,उपमा जी
हार्दिक बधाई आदरणीय उपमा शर्मा जी !बहुत शानदार प्रस्तुति!
अनुभवी अभिनेत्री का संतुलित व्यवहार कथा की जान सदैव की भाँति सुंदर कथा
शोहरत और दौलत की ढलती हुई परछाईओं को शब्द देकर प्रदत्त विषय रंग को बखूबी परिभाषित किया है प्रिय उपमा, बधाई स्वीकारेंI
शौहरत और दौलत के रंग होते ही ऐसे हैं किसी को भी मगरूर बना दे।सुंदर सन्देश देती रचना।बधाई स्वीकार करें उपमा जी।
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