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दिल जो टूटा तो वहम से निकले (ग़ज़ल)

2122 1122 22


उनकी महफ़िल से शरम से निकले
दिल जो टूटा तो वहम से निकले

आदमी से वो बने फिर शैतान
जैसे ही दैरो-हरम से निकले

मेरे लफ़्ज़ों में कोई बात नहीं?
आप शायर क्या जनम से निकले

आप खरगोश थे,उछले जी भर
हम तो कछुए-से कदम से निकले

आइना सामने जो आया तो
उसमें चेहरे कई हम-से निकले

मौत आए, तो ये ग़म का मारा
ज़ीस्त के ज़ुल्मो-सितम से निकले
======================
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 12:04am

आ. जयनित जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है. बधाई 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2016 at 6:35am

बहुत खूब भाई जयंित जी हादिक बधाई

Comment by TEJ VEER SINGH on January 18, 2016 at 7:28pm

मेरे लफ़्ज़ों में कोई बात नहीं,आप शायर क्या जनम से निकले!बहुत शानदार जयनित मेहता जी!हार्दिक बधाई!

Comment by PHOOL SINGH on January 18, 2016 at 2:38pm

अति सुंदर रचना आपको बहुत  बहुत बधाई स्वीकार हो

Comment by जयनित कुमार मेहता on January 18, 2016 at 5:35am
हार्दिक धन्यवाद,

आदरणीय Nilesh Shevgaokar जी..
आदरणीय सज्जन धर्मेन्द्र जी।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 17, 2016 at 10:58pm

अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीय जयनित जी, दाद कुबूल करें

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2016 at 7:26pm

वाह ..खूब पेशकश ..बधाई 

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