For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-१० (Now Closed)

परम आत्मीय स्वजन,

अब समय आ गया है कि अप्रैल माह के तरही मिसरे की घोषणा कर दी जाये | अब नया वित्तीय वर्ष भी प्रारंभ हो गया है और लगभग सभी लोग अपनी अपनी व्यस्तताओं से उबर चुके होंगे | इस आयोजन के साथ ही "OBO लाइव तरही मुशायरा" अपना दसवां अंक पूरा करेगा | इस सफलता के लिये आप सभी बधाई के पात्र हैं |
इस बार का मिसरा-ए-तरह मशहूर शायर जनाब मुनव्वर राना साहब की गज़ल से लिया गया है |

हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था

मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

कफिया: आना (याराना, दीवाना, बेगाना, मनमाना, पहचाना, जाना आदि आदि)
रदीफ: भी होता था
 

इस बह्र का नाम बहरे हज़ज़ है इसका स्थाई रुक्न मुफाईलुन(१२२२) होता है | ये इस मिसरे में चार बार और पूरे शेर में आठ बार आ रहा है इसलिए इसके आगे हम मुसम्मन लगाते हैं और चूँकि पूरा मिसरा मुफाईलुन से ही बना है इसलिए आगे हम सालिम लगाते हैं | इसलिए बह्र का नाम हुआ बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम | बह्र की अधिक जानकारी और अन्य उदाहरणों के लिए यहाँ पर क्लिक कीजिये|

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझाने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी कि कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें|

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २३ अप्रैल के लगते ही हो जाएगी और दिनांक २५ अप्रैल के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |

नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश "OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-10 के दौरान अपनी ग़ज़ल पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी ग़ज़ल एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर २३ अप्रैल से पहले भी भेज सकते है, योग्य ग़ज़ल को आपके नाम से ही "OBO लाइव तरही मुशायरा" प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |

फिलहाल Reply बॉक्स बंद रहेगा, मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ किया जा सकता है |
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह

Views: 6899

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

रचना को ग़ज़ल कहने के लिये कुछ मूल नियमों का पालन आवश्‍यक है। नेमीचन्‍द जी की रचनाओं में तसव्‍वुर तो नयापन लिये होता है, शब्‍द चयन भी अच्‍छा रहता है लेकिन ग़ज़ल से भटकाव रहता है तो टिप्‍पणी देने में मुझे संकोच होता है।

सलिल जी ने इशारे में बात कह दी। वही बात भाई अम्‍बरीश ने खुलकर कह दी। सलिल जी ने एक मिसरा वज्‍़न में लाकर उदाहरण दिया है और भाई अम्‍बरीश ने सभी शेर में सुधार समझा दिया।

बस थोड़ा सी मेहनत और करनी होती है अश'आर को वज्‍़न में लाने के लिये।

नेमी चन्‍द जी में संभावनाएं अच्‍छी हैं, बस मेहनत और चाहिये अन्‍यथा एक अच्‍छी भाव प्रस्‍तुति भी आकर्षण खो बैठती है।


भाई नेमी चंद पुनियाजी !  भाव पक्ष की दृष्टि से बेहतरीन रचना .....बधाई आपको ...... क्षमा करें ! आपकी गज़ल के कला पक्ष को सँवारने का एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ .........

कई सदियों से जीना और मर जाना भी होता था।
हरिक आबाद घर में इक वीराना भी होता था।।

अभी जाके मिला दिल को सुकूं औ ये नज़र आया।
दिले-बेजार को तुम बिन तो समझाना भी होता था।।

गुजारे दिन कहें कैसे गुज़र जाते थे वो लेकिन।
शबे तनहा नहीं थे हम ये सिरहाना भी होता था।।

भुलाये भी नहीं भूलें तुम्हारे बोल गजलों के ।
रमे आठों पहर रहते तो गिनवाना भी होता था ।।

जहाँ हो तुम रहो बनकर हमारी आँख का काजल।
बनूँ चन्दन तेरे माथे ये जतलाना भी होता था।।

वाह अम्बरीश भाई जी - क्या पोलिश किये हैं पूनिया साहिब के अशआर !
रचना आपकी दिल से पसंद आई पुनिया साहब....बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने....शुभकामनायें..
पुनिया साहिब प्रयास और ख्यालात दोनों अच्छे है , शेष तिलक सर ने इशारा कर दिए है |
आदरणीय चन्दन साहब

जैसा कि विद्वतजन पहले ही इंगित कर चुके है आपसे एक बेहतर गज़ल की प्रतीक्षा है|
भाव पक्ष के लिए नेमिचंद जी को बधाई
आदरणीय नेमीचंद जी अच्छे खयालात की ग़ज़ल के लिये साधुवाद |
बहुत सुन्दर प्रयास है पूनिया साहिब !

मुक्तिका:
संजीव 'सलिल'
*
हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था.
मिलें खुशियाँ या गम आबाद मयखाना भी होता था..

न थे  तनहा कभी हम-तुम, नहीं थी गैर यह दुनिया. 
जो अपने थे उन्हीं में कोई बेगाना भी होता था.

किया था कौल सच बोलेंगे पर मालूम था हमको
चुपाना हो अगर बच्चा तो बहलाना भी होता था..

वरा सत-शिव का पथ, सुन्दर बनाने यह धरा शिव ने. 

जो अमृत दे उसको ज़हर पाना भी होता था..

 

फ़ना वो दिन हुए जब तबस्सुम में कँवल खिलते थे.

'सलिल' होते रहे सदके औ' नजराना भी होता था..

शमा यादों की बिन पूछे भी अक्सर पूछती है यह
कहाँ है शख्स वो जो 'सलिल' परवाना भी होता था..

रहे जो जान के दुश्मन, किया जीना सदा मुश्किल.
अचम्भा है उन्हीं से 'सलिल' याराना भी होता था..

 

**************

शानदार प्रस्तुति आचार्य जी....बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने.....अब और क्या लिखू तारीफ़ के लिए समझ में नहीं आ रहा है.....
abhar.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service