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बहुत ही सूक्ष्म भाव पकड़ा आपने , प्रभाकर जी। पति ने मन को छुआ और पत्नी के तन की पीड़ा गायब। छोटे बच्चे को चोट लगती है तो मां ऊँगली पर फूंक मार कर कहती है " लो , दर्द गायब " और बच्चा पीड़ा भूल जाता है। कितनी बढ़िया फूँक मारी यहाँ बाबू जी ने ! बधाई स्वीकारें
विन्यास संयत, प्रस्तुतीकरण सहज, कथा प्रवाह सतत, संवाद संप्रेष्य, विवेचना मुग्धकारी, परिणति मनभावन ! ये होता है मन का भाव और ये होती है हृदय की भावना !
आदरणीय योगराज भाईसाहब, आपने नम कर दिया ! कितनी कोमलता से, कितनी निश्छलता से, कितनी आत्मीयता से, कितनी गहराई से, कितनी उत्फुल्लता से, कितने विश्वास से आपने एक अन्योन्याश्रय सम्बन्ध को अपनी प्रस्तुति का आधार बनाया है !
अद्भुत !
मैं उन दिनों चेन्नै में नया-नया था. तिरुवल्लिकेणी का एक मैंशन ही मेरा ठिकाना बना हुआ था. उसी मैंशन में मेरे बगलगीर इण्डियन एक्सप्रेस के एक बुज़ुर्ग़ कर्मचारी हुआ करते थे. हमारी उनसे पट गयी. हर शाम हम दोनों साथ-साथ छत पर समन्दर की हवा खाया करते थे. बात की बात में एक बात निकल पड़ी, तो उन्होंने बड़ा ही गहरा सूत्र दिया था - एक प्रेमी पति की निग़ाह में पत्नी का सदा वही रूप हुआ करता है जो उसे पहली बार दिखा होता है. आगे के जीवन में हुए तमाम बदलाव मात्र भौतिक और शारीरिक होते हैं, जिन्हें आँखें भले देखा करें, एक मुग्ध निग़ाह नहीं देखती, न कुछ समझना चाहती है. यह कहते हुए उनकी आँखों में जो चमक उठी थी, उसने मुझे चकित कर दिया था. हम देर तक उनका कांतिमान लाल चेहरा देखते रहे थे.
आपकी इस प्रस्तुति की अंतर्धारा में, आदरणीय, मैं कुछ देर बहना चाहता हूँ. आप चाहें तो मुझसे बधाइयाँ आदि चुपचाप ले लें. मैं डिस्टर्ब नहीं होना चाहता.
सादर
आदरणीया कान्ताजी, टिप्पणी पर टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद
कथा कक्या ये तो लआगा जींदगी की असलियत है !!यादें वो भी भी सुहानी ययाद कर शरीर के दर्द दूर ही हओंग ....जीवन सअथी का सआथ हो तो क्या कहाने!!!!!सआदर नमस्ते
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज भाई जी!आपकी अनुपम कृति पढते पढते मेरी आंखें नम हो गयी!यह एक मीठी सच्चाई को उजागर करती लघुकथा है!मेरा निजी अनुभव है कि गहन पीडा के क्षणों में भी अपने किसी प्रिय जन का साथ पीडा के आभास को निःसंदेह कम कष्ट प्रद बना देता है!पुनः हृदयतल से बधाई!
कहावत है मन चंगा तो तन अच्छा | और इसका सबूत है - पत्नी का पीला चेहरा अब गुलाबी होने लगा था " ये पंक्तिया | दर्द काफूर हो गया | मन मस्तिष्क का सापेक्ष प्रभाव तो पड़ता है | मानुष के अभिलासाएं पूर्ण न होने पर विपरीत प्रभाव पड़ता है | अति सुंदर और प्रभाव छोडती लघु कथा हुए है आदरणीय
इस कथा को बस महसूस कर सकते हैं आदरणीय बधाई और धन्यवाद आपका इस मधुर एहसास के लिए
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