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" आइये ,अपनी कुर्सी पर विराज लीजिए   ।" इतना तंज ! ऐसे कह गये वे जैसे उसके सिर पर ही बैठने वाली हो ।

"जी , अब काम समझा दिजीए कि मेरा काम क्या होगा यहाँ ?" उनके लहजे से अपमानित सा महसूस कर रही थी । क्या इनके साथ ही काम करना होगा उसे ? कैसे झेलेगी ? हृदय रूआँसा हो रहा था ।

" अरे ,आप क्या काम करेंगी ? आप तो बस पगार उठा कर ऐश करेंगी , काम तो हमें करना होगा ।" वह चिढ़ कर बोला ।

"मतलब ?" सुनकर अनमना उठी । सतीश आप कैसे झेलते रहे होंगे ऐसे लोगों को , पति की याद में आँसू छलक उठे ।

" हुँ ह ,अनुकंपा नियुक्ति जो ठहरी ! आपको आता क्या है , जो काम करेंगी ! इससे अच्छा था कि आपको घर बिठाकर ही पगार ....." बातों में कटाक्ष की पैनी धार सीने को भेदती सी उतर गई ।


" पहले काम तो सिखा कर देखिए , अनाधिकारिक रूप से नहीं आई हूँ यहाँ , पढी - लिखी हूँ , आपसे वादा है अपनी मेहनत और लगन से इतना काम करके दुंगी आपको  कि  , मै अनुकंपा नियुक्ति नहीं , कुर्सी की हकदार लगुंगी ।" सहन करने की क्षमता ने जबाव दे दिया था ।

" अकड़ तो बहुत है , लिजिये यह फाइलें ,पढिये और समझिए , ना समझ में आये तो मै यही बगल वाले सीट पर ही हूँ । " मुस्कुरा कर वह अचानक से सौम्य हो गये ।

अचानक आत्मीयता ?
ओह ! नयी सोच , उसके मनोबल को परखा जा रहा था । आॅफिस में भी रैगिंग ..... वह मुस्कुरा उठी ।


मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 27, 2015 at 9:25pm

आदरणीया कान्ता जी ..परीक्षाएं जीवन में हर मोड़ पर देनी पड़ेंगी और हर जगह आत्म बिश्वास से ही  काम चलेगा ..अच्छा बिषय चुना है आपने ..इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2015 at 11:14am

बहुत सुन्दर ...

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 24, 2015 at 7:41am
कटाक्ष का जवाब आत्मविश्वास ने दिया -
//" पहले काम तो सिखा कर देखिए , अनाधिकारिक रूप से नहीं आई हूँ यहाँ , पढी - लिखी हूँ , आपसे वादा है अपनी मेहनत और लगन से इतना काम करके दुंगी आपको कि , मै अनुकंपा नियुक्ति नहीं , कुर्सी की हकदार लगुंगी ।"//- ऐसी परिस्थितियों में रैगिंग जैसे कटाक्ष या हतोत्साहित करने की किसी भी चेष्टा को परास्त किया ही जाना चाहिए नवनियुक्त कर्मचारी द्वारा। बहुत बढ़िया संदेश वाहक सार्थक कृति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीया कान्ता राय जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 23, 2015 at 7:34pm

ये उतार चढ़ाव बहुत अच्छा लगा कहानी में बहुत बढ़िया हार्दिक बधाई आ० कांता जी कही कही टंकण त्रुटी रह गई है शायद वो आप ठीक कर ही लेंगी |---दिजीए = दीजिये ,दुंगी -दूँगी    लगुंगी =लगूँगी यही =यहीं 

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