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भला सच यार कब वैसे चुनावी आस को होना
चुराकर आम के सपने सदा गुम खास को होना /1
हकीकत लोकराजों की जो नौकर है तो नौकर है
भले कागज की बातों में है मालिक दास को होना /2
लड़ाई आज सत्ता की बदलती रंग गिरगिट ज्यों
बहाना फिर फसादों का वही इतिहास को होना /3
कहाँ तक हम करें बातें बना सौहार्द्र जीने की
खपा इतिहास में माथा खतम विश्वास को होना /4
सुना कल शीत की बरखा बहाकर ले गई सबकुछ
मगर बदनाम चैरफा सदा चैमास को होना /5
पिलाना हो पिला साकी न तू मगरूर हो इतरा
तड़पकर भाग्य में लिक्खा बुझी हर प्यास को होना /6
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ० भाई सुशील जी अपनी पस्थिति से ग़ज़ल का मन बढ़ने और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l
पिलाना हो पिला साकी न तू मगरूर हो इतरा
तड़पकर भाग्य में लिक्खा बुझी हर प्यास को होना /6
वाह आदरणीय बहुत ही सुंदर अशआर बन पड़े हैं। आज के हालात पर लिखी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।
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