For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फ़िरोज़ा बेगम –लघुकथा -

फ़िरोज़ा बेगम –लघुकथा - 

 असली नाम तो उसका शबनम बानो था मगर पूरा गॉव उसे फ़िरोज़ा बेगम पुकारता था!इसकी वज़ह थी कि वह निकाह वाले दिन फ़िरोज़ी सूट पहनी थी!सबने मना किया था कि यह शुभ रंग नहीं है!लेकिन वह ज़िद पर अडी रही! क्योंकि फ़िरोज़ी रंग उसका पसंदीदा रंग था!वह वैसे भी शुभ अशुभ में विश्वास नहीं करती थी!

शकील अहमद से उसकी मुलाक़ात एक शादी में हुई थी!शकील का व्यक्तित्व भी गज़ब का  था!वह भी अप्रतिम सौंदर्य की मालकिनथी ! दौनों ने एक दो मुलाक़ात में ही निक़ाह का फ़ैसला कर लिया !

शकील की महलनुमा कोठी में आते ही पहले ही दिन उसके सारे सपने चकनाचूर  हो गये!शकील की पहले से ही दो और बेगम थी!शबनम को अपना प्यार बांटना गंवारा नहीं था! उसी दिन बिना आगा पीछा सोचे वह अपनी मॉ के पास लौट आई!शकील ने उसे लाख मनाने की कोशिश की!हज़ारों सब्ज़बाग दिखाये मगर शबनम टस से मस नहीं हुई!उसकी एक ही रट थी कि या तो  उन दौनों बेगमों को घर से बाहर करो या तुम उनको छोडकर मेरे साथ रहो!मगर यह शकील के लिये मुमकिन नहीं था क्योंकि वे दौनों ही बेगम नवाबों के खानदान से थीं!उनको छोडना शकील की हैसियत पर सवालिया निशान लगा देता!

शबनम एक मामूली खानदान से थी! उसके परिवार में उसकी मॉ के अलावा कोई नहीं था !इसके बावज़ूद भी वह कोई समझौता करने को राज़ी नहीं थी!

शबनम के प्यार का फ़ूल खिलने से पहले ही मुरझा गया! दकियानूसी  रीति रिवाज़ों के भंवर में फ़ासले बढते गये!

शकील और शबनम का प्यार बहु विवाह की कुप्रथा के फ़ासले को मिटाने में नाकामयाब हो गया!वे सदैव के लिये ज़ुदा हो  गये!

धीरे धीरे पूरे गॉव में यह अफ़वाह  ज़ोर शोर से फ़ैल गयी कि यह सब अपशगुनी  फ़िरोज़ी सूट की वज़ह से हुआ था !

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 733

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on December 4, 2015 at 5:33pm

हार्दिक आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 4, 2015 at 5:22pm

आदरणीय तेजबीर जी ..समाज तभी बदलेगा जब सोच बदलेगी ..इस सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on December 4, 2015 at 10:15am
हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी!आप जैसे गुणी जनों की सार्थक टिप्पणी मेरे उत्साह वर्धन के लिये पर्याप्त सिद्ध होती है!पुनः आभार!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 3, 2015 at 10:29pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति है. आपको हार्दिक बधाई.

Comment by TEJ VEER SINGH on December 3, 2015 at 10:12am

हार्दिक आभार आदरणीय सुनील वर्मा जी!आप जैसे गुणी जनों की शुभकामनायें ही मुझे प्रेरणा देती हैं कि मैं कुछ अलग सा लेखन करूं!पुनः आभार! 

Comment by TEJ VEER SINGH on December 2, 2015 at 7:00pm

हार्दिक आभार आदरणीय कांता रॉय जी!लघुकथा पर आपकी विशेष टिप्पणी एक अलग ही सुखद आभास कराती है!आपका मार्ग दर्शन और सटीक आंकलन बेहद प्रेरणा प्रद होता है!भविष्य में भी इसी प्रकार निर्देशित करते रहिये!पुनः आभार!

Comment by TEJ VEER SINGH on December 2, 2015 at 6:55pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!लघुकथा को समय देने और उसे सराहने हेतु!

Comment by kanta roy on December 2, 2015 at 6:51pm

वाह !!! शीर्षक देखकर ही मन कुलकुलाने लगा इस कथा को पढ़ने के लिए और वाकई ये लघुकथा बहुत खूबसूरत रची है आपने।ढेरों   बधाई आपको आदरणीय तेजवीर जी। 

Comment by TEJ VEER SINGH on December 2, 2015 at 6:49pm

हार्दिक आभार आदरणीय सतविंदर जी!लघुकथा को समय देने और उसे सराहने हेतु!

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 2, 2015 at 4:16pm
एक तीर से कई निशाने बख़ूबी साधे गए हैं। हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय तेज वीर सिंह जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service