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हमारे यहां तो दान , दया , उदारता,मानवता हमारे राज नैतिक जीवन के संकल्प हैं -------वाह !!! बहुत खूब कही है आपने !
यह बात तो सही है की हम चाहें जो भी कहे ,लेकिन अन्य देश के मुकाबले हम अपने इन जीवन मूल्यों पर सदा ही सशक्त उतरते है अन्य किसी भी देश के मुकाबले। बहुत खूब शिल्प देखने को मिली है आज आपकी कथा में भी।
पढ़कर मन दंग -दंग हो उठा। सर जी की कथा पढ़कर जो गर्व के भाव से हम स्निग्ध हुए थे आपकी इस लघुकथा ने उस देशप्रेम के जज्बे को और पुष्ट कर दिया है। रगो में रक्तप्रभाव को बढाती हुई रचना के लिए ढेरो बधाइयां आदरणीय डॉ विजय शंकर जी।
ये फ़र्क़ तो बरकरार रखना है शासन को जिससे वो दया , सहायता , परोपकार जैसे दिखावे कर सके | बहुत बढ़िया रचना , बधाई आपको
हार्दिक बधाई आदरणीय विजय शंकर जी!बहुत सशक्त और संदेश प्रद लघुकथा!
कितनी सच्ची बात कहीं आपने ..बढ़िया कथा सादर अभिवादन के साथ |
"कोई गरीब क्यों होगा अगर उसे उसका निर्धारित पारिश्रमिक मिलता रहेगा।", आदरणीय विजय शंकर जी, किसी गहन सोच का परिणाम यह पंक्ति मन को छू गयी, यह पंक्ति साधारण नहीं है, हमारे देश में केवल किसान ही नहीं बल्कि स्किल्ड और अनस्किल्ड मेनपॉवर दोनों ही निर्धारित पारिश्रमिक नहीं मिलने का शिकार हैं| काम कोई और करता है और कमाता कोई और है| इस विषय के चुनाव पर, और एक संदेशप्रद बहुत अच्छी रचना हेतु कृपया सादर बधाई स्वीकार करें|
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