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आपका अभार सर जी रचना पर इतनी समिक्षात्मक टिप्पणी के लिये .//ज़िग-ज़ैग फोर्मेटिंग रचना को पेस्ट करते हुए हो गयी शायद इसके लिये क्षमा. वैसे यह मात्र किस्सागोई नहीं है हकिकत है जिसे रचना मे ढालने का प्रयास किया था.शिल्प पर कसावट के लिये प्रयासरत रहूँगी.
दृढ़ संकल्प हेतु प्रेरित करती सराहनीय लघुकथा .... आदर्शवाद का कुछ आधिक्य सा प्रतीत हुआ.... अस्तु, सराहनीय !!!
धन्यवाद राहिला जी
बहुत बढ़िया संकल्प ! हर स्त्री कभी न कभी यह संकल्प मन में पालती ही है | नायिका का संकल्प पूर्ण हो इसी दुआ के संग बधाई प्रेषित है | सादर
धन्यवाद सुधिर जी . सकारात्मक टिप्पणियाँ हौसला बढाती है.आभार
बहुत ही उम्दा और सार्थक प्रस्तुति के साथ-साथ कमजोर पक्ष की ओर इशारा करती जो मुझे ज्यादा अच्छा लगता.आप रचना पर आई आभार आपका
बहुत अच्छी सकारात्मक प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई आपको आदरणीया नयना जी
आदरणीय आभार आपका
आदरणीय नयना जी, लघुकथा का उद्देश्य परम्परागत निरर्थक खोखले जीवन-मूल्यों पर प्रहार या हर 'ग़लत' व्यवस्था पर चोट करना व नवीन सार्थक जीवन-मूल्यों के लिए भूमि तैयार करना तथा सामाजिक विसंगतियों-विकृतियों एवं व्यक्ित की बाहरी व भीतरी जटिलताओं की ओर संकेत करना है जो सूक्ष्म होने के कारण साधारणतया अनकही रह जाती हैं या दब जी जातीं है और अप्रभावी रह जाती है। लघुकथा प्राय समस्याजनक स्िथती की ओर संकेतात्मक अभिव्यक्ित देकर ही मौन हो जाती है और अप्रत्यक्ष रूप में समाधान के लिए उत्प्रेरित करती है। इसमें स्िथतयों का निदान लेखक द्वारा सुझाया गया कम और पाठक द्वारा खोजा गया अधिक होता है क्योंकि जब पाठक किसी भी व्यवस्था के 'ग़लत रूप' से परिचित होता है तब स्वभावत ही व उसके मूल कारण के हल तक ही यात्रा का प्रयास करता है। आपकी लघुकथा न केवल समस्या की ओर इशारा कर रही है बल्िक इसका हल भी निकाल रही है और अंत की दो पंक्ितयों /काश पूरा हिन्दुस्तान भी इसी तरह बेहतर हो--क्या हो पाएगा ऐसा?
"निश्चित हो सकेगा । इसी तरह की दृढ संकल्प शक्ति के साथ।"/ में कहीं न कहीं लेखक की उपस्िथती का आभास हो रहा है । बहरहाल आपको इस प्रस्तुति हेतु शुभकामनाएं ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नयना जी!बेहतरीन लघुकथा !पुरानी रूढिवादी विचारधारा के विरुद्ध संघर्ष का संकल्प लेकर आन्दोलन का बिगुल बजाने की साहसिक प्रेरणा देती प्रस्तुति!पुनः बधाई!
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