For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़मानॆ का चलन यारॊ यहाँ इक-दम निराला है !!
गिरा जॊ राह मॆं उसकॊ कहॊ किसनॆं सँभाला है !!(१)

चला जॊ राह ईमाँ की उसी पर है उठी उँगली,
सरीखा आँख मॆं चुभता सभी की तॆज भाला है !!(२)

चलीं हैं आँधियाँ कैसी बुझानॆ अब चिराग़ॊं कॊ,
कभी सॊचा नहीं उन नॆं अँधॆरा स्याह काला है !!(३)

लिखी किसनॆ यहाँ तहरीर है ख़ूनी लिबासॊं की,
जहाँ दॆखॊ वहीं पॆ बस क़ज़ा का बॊल-बाला है !!(४)

वफ़ा की राह चलनॆं का नतीज़ा खून कॆ आँसू,
मग़र फिर भी वफ़ाऒं कॊ ज़हां मॆं खूब पाला है !!(५)

सियासी इल्म यॆ अपनी समझ मॆं ही नहीं आया,
कभी पूजा हमॆं तुमनॆं कभी दिल सॆ निकाला है !!(६)

ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना,
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !! (७)

"राज़ बुन्दॆली
मौलिक एवं अप्रकाशित,,,,,,

Views: 434

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 1:12pm

आदरणीय राज भाई , बहुत बढिया गज़ल कही है , सभी अश आर के लिये दिली बधाइयाँ ॥

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 2, 2015 at 5:40am

चलीं हैं आँधियाँ कैसी बुझानॆ अब चिराग़ॊं कॊ,
कभी सॊचा नहीं उन नॆं अँधॆरा स्याह काला है 

बहुत खूब कहा आपने आदरणीय

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2015 at 11:55pm

आदरणीय राज बुन्देली जी शानदार ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई 

Comment by MAHIMA SHREE on April 1, 2015 at 9:15pm

सियासी इल्म यॆ अपनी समझ मॆं ही नहीं आया,
कभी पूजा हमॆं तुमनॆं कभी दिल सॆ निकाला है !!

ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना, 
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !!...वाह... शानदार... बधाई

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 1:43pm

आ० राज बुन्देली जी

बहुत अच्छी गजल है . आपने जान फूंक दी  है . सादर .

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 1, 2015 at 10:51am
ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना,
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !!
बहुत खूब , बधाई , आदरणीय राज बुंदेली जी , सादर।
Comment by Sushil Sarna on April 1, 2015 at 9:58am

ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना,
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !! (७)
वाह वाह वाह .... कितनी भी तारीफ़ करूँ रुकती नहीं जुबां ,कितनी हसीं बना दी आपने एहसासों की बस्तियां … आदरणीय बुंदेली जी इस दिलकश और खूबसूरत शे'रों के गुलदस्ते की प्रस्तुति पर हार्दिक हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। रोटी पर अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
yesterday
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Thursday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service