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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-56 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन( चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन,

तरही मुशायरे का संकलन प्रस्तुत है| पूर्व की भांति मिसरों में दो तरह के रंग भरे गए हैं, लाल अर्थात बे बहर मिसरे और नीले अर्थात दोषपूर्ण मिसरे|

___________________________________________________________________________________

मिथिलेश वामनकर

जुनूं की राह में दुश्वारियाँ नहीं चलतीं
फ़ना के दौर में तैय्यारियाँ नहीं चलतीं

कोई झुका के सिरों को न अब करे सजदा
कोई न मान ले अब आरियाँ नहीं चलतीं

चलो चराग बुझाओ सहर को आने दो
हमेश:रात की अय्यारियाँ नहीं चलतीं

नहीं जो बस में अगर यार फिर मना कर दे
कभी भी शर्त पे दिलदारियाँ नहीं चलतीं

नफ़स परस्त हुआ इस कदर जवां पनघट
हमारे गाँव में पनिहारियाँ नहीं चलतीं

हवा दरख्तों से हर बार रूठ जाती है
खुद अपनी रूह से मक्कारियाँ नहीं चलतीं

ये जिंदगी का ज़रा मैच हो तबीयत से
घिसी-पिटी सी यहाँ पारियाँ नहीं चलतीं

ये कैफियत भी अजब हो गई जमाने की
बुजुर्ग बाप की बेगारियाँ नहीं चलतीं

उसे भरम ये मुहब्बत की रहगुजर आसां
उसे यकीन कि दो धारियाँ नहीं चलतीं

ये दफ्तरों की रिवायत तो कामयाबी है
किसी भी हाल में बीमारियाँ नहीं चलतीं

ज़रा-सी बात को ‘मिथिलेश’ मत लगा दिल से
"दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं”

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rajesh kumari

जहीन झील में चिंगारियाँ नहीं चलतीं
कोई सियासती मक्कारियाँ नहीं चलतीं

तमाम रात जहाँ चाँद की सजे महफ़िल
दिये बुझाने की तैय्यारियाँ नहीं चलतीं

खिले सुकून भरा अम्न प्यार का गुलशन
झुकी कमर पे जहाँ आरियाँ नहीं चलतीं

जफ़ा ,फरेब पे टिकती न प्यार की दुनिया
दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं

महज अनाज किसी पेट की जरूरत हो
वहाँ पे फूलों भरी क्यारियाँ नहीं चलतीं

जहाँ गुलामगिरी और काम से मतलब
गरीब की वहाँ दुश्वारियाँ नहीं चलतीं

जहाँ पे आंधी या तूफ़ान का बसेरा हो
हुजूर शीशे की अलमारियाँ नहीं चलतीं

_______________________________________________________________________________

Hari Prakash Dubey

गुलाल रंग वो पिचकारियाँ नहीं चलतीं
कन्हाई राधिका की यारियाँ नहीं चलतीं

न जाने खो गए कहाँ मिरे हरे जंगल
बचे भी होते अगर आरियाँ नहीं चलतीं

मिठास गूजियों की और रस जलेबी का
बजार की भी वो तैय्यारियाँ नहीं चलतीं

कहाँ वो खो गए है खेल आज बच्चों के
हँसी खुशी की वो किलकारियाँ नहीं चलतीं

ये लोग साथ यहाँ मस्तियाँ नहीं करते
गली गली की वो आवारियाँ नहीं चलतीं

जो भाभियों ने लिए रंग, दौड़ते देवर
वो पाक प्यार की एतबारियाँ नहीं चलतीं

कि गिद्ध झुण्ड बना के जो उड़ रहे होंगे
ये खौफ हाय कि पनहारियाँ नहीं चलतीं

न शाम है न ग़ज़ल है न हसीं महफ़िल है
ग़ज़लगो की भी तो फनकारियाँ नहीं चलती

जनाब खेल है दिल से दिलों के मिलने का
“दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलती”

_______________________________________________________________________________

Samar kabeer

वहाँ किसी की भी अय्यारियाँ नहीं चलतीं
ख़ुदा के सामने मक्कारियाँ नहीं चलतीं

ग़ुरूर ,बुग़्ज़, अदावत,फ़रेब,मक्कारी
हमारे साथ ये बीमारियाँ नहीं चलतीं

हमारे दर्द को कैसे समझ सकेगा भला
वह जिस के दिल पे कभी आरियाँ नहीं चलतीं

ये बात कौन बताएगा उस सितमगर को
मुहब्बतों में दिल आज़ारियाँ नहीं चलतीं

मिटादी उम्र रवादारियाँ निभाने में
ये क्या कहा कि रवादारियाँ नहीं चलतीं

यहाँ तो सर को झुकाने से जीत मिलती है
"दिलों के खेल में ख़ुद्दारियाँ नहीं चलतीं"

"समर" मैं झूट के क़दमों में सर झुका देता
तो मेरे क़त्ल की तय्यारियाँ नहीं चलतीं

_______________________________________________________________________________

दिनेश कुमार

ख़ुदा के सामने अय्यारियाँ नहीं चलतीं
कि रोज़-ए-हश्र अदाकारियाँ नहीं चलतीं

तेरी ज़बान की जो आरियाँ नहीं चलतीं
तेरे ख़िलाफ़ ये चिंगारियाँ नहीं चलतीं

वो मेरी आँखों में कब तक यूँ धूल झोंकेगा
कि बार बार तो मक्कारियाँ नहीं चलतीं

कोई भी ज़ल्सा हो लोगों में वो खुशी कब है
कि अब वो पहले से तैय्यारियाँ नहीं चलतीं

सभी की आँखों से होली के रंग गायब हैं
गुलाल रस्मी है, पिचकारियाँ नहीं चलतीं

हमेशा साथ ही ग़म और खुशी के काफ़िले हैं
बग़ैर काँटों के फुलवारियाँ नहीं चलतीं

किसी के रोने तड़फने से कब कसाई रुके
कि वक़्त-ए-ज़ब्ह तो सिसकारियाँ नहीं चलतीं

किसी का प्यार हो पाना तो झुकना सीखो तुम
" दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं "

'दिनेश' तेरे ग़मों की कोई तो हद होगी
सभी ये कहते हैं ग़मख़्वारियाँ नहीं चलतीं

______________________________________________________________________________

Dr. Vijai Shanker

यहां बनावटी अदाकारियाँ नहीं चलतीं
इश्क में ज्यादा होशियारियाँ नहीं चलतीं ॥

आशिकी किसी जंग से कम नहीं होती है
यहां बहाने औ लाचारियाँ नहीं चलतीं ||

इश्क गुलामी है क्या क्या करना पड़ जाए
समझ लो खाली वफ़ादारियाँ नहीं चलतीं ॥

मामला दिलों का है जहमत उठा लीजिये
यहां दिमागी कारगुजारियाँ नहीं चलतीं ॥

धार तलवार पे चल सकते हों तो चलिए
साथ फ़ौज हरदम फुलवारियां नहीं चलतीं ॥

मोहब्बत झुकना सिखा देती है दोस्तों
दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं ॥

___________________________________________________________________________________

गिरिराज भंडारी

ख़ुदा के पास ये हुशियारियाँ नहीं चलतीं
ये उसके नाम से मक्कारियाँ नहीं चलतीं

तकाज़ा सादगी है, आखिरी सफर का यहाँ
किसी कफ़न मे कभी धारियाँ नहीं चलतीं

मलक उल मौत का जब भी इशारा होता है
कोई बहाना, या तैयारियाँ नहीं चलतीं

न जाने कौन था कह कर गया जो कानों में
बिसाते ज़िन्दगी में पारियाँ नहीं चलतीं

ये ईंट गारे की दुनिया है, पत्थरों जैसी
यहाँ पे फूल , कली, क्यारियाँ नहीं चलतीं

हरिक शजर ने कही बात बस यही, रोते
बिना बशर के कभी आरियाँ नहीं चलतीं

इरादे कर के जो चलता है, राहे मंज़िल पर
तो साथ में कभी दुश्वारियाँ नहीं चलतीं

मुझे ख़ुदी से ज़ुदा कर ख़ुदा , अगर सच है
"दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं

__________________________________________________________________________________

laxman dhami

सुनो भी यार कि हुशियारियाँ नहीं चलती
किसी भी हाल में यल्गारियाँ नहीं चलती

रही है रीत समर्पण से जीत मिलती है
दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलती

बहुत हैं आज भी जिश्मों की मंडिया हर सू
न बोल यार कि लाचारियाँ नहीं चलती

उगा लो खार चमन में अगर बसर चाहो
खिजाँ के राज में फुलवारियाँ नहीं चलती

कहीं हों दूर अगर खूब रतजगे रहते
अगर हों पास तो बेदारियाँ नहीं चलती

लुटा हूँ आके तो जाना तेरा नगर क्या है
सुना तो खूब कि बटमारियाँ नहीं चलती

करे है रोज सियासत मुकर मुकर वादा
तवायफी में वफादारियाँ नहीं चलती

मिलाना हाथ ही होता है हठ नहीं करते
अमन की बात पे सरदारियाँ नहीं चलती

धरम का काम बचाना जिंदगी यारो
धरम में खून की पिचकारियाँ नहीं चलती

बसे हैं खूब इधर डायनों के घर यारो
यहाँ पड़ोस में किलकारियाँ नहीं चलती

______________________________________________________________________________

khursheed khairadi

गया उधर वो जिधर लारियाँ नहीं चलतीं
सफ़र में इतनी रियाकारियाँ नहीं चलतीं

न दरबदर ही लियाक़त यहाँ भटकती यूँ
अगर वतन में तरफ़दारियाँ नहीं चलतीं

है अच्छा राह-ए-मुहब्बत में नासमझ रहना
‘’दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं ''

दुआ किसी की मेरे साथ साथ चलती है

वगरना राह में फुलवारियाँ नहीं चलतीं

तुम्हारे बस में हो गर तुम ये काम कर लेना
गुलों प’ हम से तो ये आरियाँ नहीं चलतीं

सबब न तर्क-ए-तअल्लुक़ का याद है उनको
है याद इतना वफ़ादारियाँ नहीं चलतीं

गिरोगे बर्ग-ए-शिकस्ता की तर्ह धरती पर
य’ आसमान है लाचारियाँ नहीं चलतीं

ज़मीन पर उतर आयेगा शाम तक ताइर
फ़लक प’ इतनी कलाकारियाँ नहीं चलतीं

ख़ुलूस-ए-अहले-सियासत को आज़माओ मत
बुझाने आग को चिंगारियाँ नहीं चलतीं

ज़िया बिखेरना गुरबतकदों में भी ‘खुरशीद’
रहे-ख़ुलूस में ज़रदारियाँ नहीं चलतीं
______________________________________________________________________________

योगराज प्रभाकर

तभी तो साथ ये दुश्वारियाँ नहीं चलतीं
हमारे साथ खबरदारियाँ नहीं चलतीं
.
उठे सरों की वो सरदारियाँ नहीं चलतीं
ख़ुदा के घर ये तरफदारियाँ नहीं चलतीं
.
वो जिसकी शाख से हत्थे नहीं बना करते
उसी शजर पे कभी आरियाँ नहीं चलतीं
.
गुरूर छोड़ करो अब सुरूर की बातें
हिकारतों से कभी यारियाँ नहीं चलतीं
.
गुलों से इश्क़ अगर, बादलों से बात करो
बरसती आग में फुलवारियाँ नहीं चलतीं
.
कोई तो हाथ यक़ीनन लगे पसे मंज़र
बगैर पाँव तो चिंगारियाँ नहीं चलतीं
.
दिलो के खेल में दिलदारियाँ ही चलती है
दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं

_______________________________________________________________________________

krishna mishra 'jaan'gorakhpuri

शहर-ए-वफ़ा में कारोबारियाँ नहीं चलतीं
के दोस्ती में होशियारियाँ नहीं चलतीं

मुहब्बत काम है बड़े ही सब्र-ओ-ताब का...
यहाँ धडकनों की बेकरारियाँ नहीं चलतीं

मै लाख़ लूँ कर जादूगरी कलामों की
उसी के सामने मेरी अश्यारियाँ नहीं चलतीं

इसी लहू-खु-ने काफिर बना रक्खा है जां
मुहब्बतों में मुख्तारियाँ नहीं चलतीं

आ आजमा के मुझे-तू ले देख ,कौन कहें है?
दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं

पहुंचना है मकामें खुदाको, तो खो-जा
रूहों के साथ रस्तों की जानकारियाँ नहीं चलतीं

जबीं सजदे कबसे झुका-के गर्दन बैठा
उसी हसीं संगदिलाँ-से आरियाँ नहीं चलतीं

बला क्या अब पैदाइशीं का काम करेंगी मशीने
गुलिस्तां में बच्चियों की किलकारियाँ नहीं चलतीं

ख़ुदी को बेंच जहाँ की जो दौलताँ मिलें
मुझसे ऐसी सनम् खुद्दारियाँ नहीं चलतीं

तुमतो ख़ुदाके वास्ते ‘जान’ कुछ शर्म अदा करों..
जहान में बेवफाओं के वफादारियाँ नहीं चलतीं ‘

_______________________________________________________________________________

मोहन बेगोवाल

ऐ ! जिन्दगी यहाँ हुशियारियाँ नहीं चलती
कहीं अगर कोई मक्कारियाँ नही चलती

कहूँ तुझे वहीं बाते जो सब कहे अक्सर,
जो बीते में थी अभी यारियाँ नहीं चलती

कभी झुके तो मिली दोस्ती हमें तेरी
“दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलती”

उसे बता कि यही एक पयाम मेंरा है,
रखी जो हाथ सदा आरियाँ नहीं चलती

कभी चले तो ये भी तुम ध्यान में रखना
किसी भी राह से दिलदारियां नहीं चलती

ये जिन्दगी भी बताये तो उसी खुदा बारे
मिले न और वफादारियां नहीं चलती

अभी रही न हैसीयत रही कभी थी जो
हमेशा के लिये सरदारियाँ नहीं चलती

_______________________________________________________________________________

D.K.Nagaich 'Roshan'

वफ़ा के दौर की तैयारियां नहीं चलतीं,
यहां पे इश्क की बीमारियां नहीं चलतीं.

गुज़र गया है ज़माना वो बुर्दवारी का,
ये अहद-ए-नौ में तो अब यारियां नहीं चलतीं.

बदल ही जाएगीं उसकी भी फ़ित्रतें इक दिन,
बहुत दिनों ये जफ़ाकारियां नहीं चलतीं.

सफ़र समेट ही लेती है मौत लम्हे में,
वहां पे जीस्त सी दुश्वारियां नहीं चलतीं.

खुदा के अद्ल में पाकीज़गी रवायत है,
खुदा के अद्ल में मक्कारियां नहीं चलतीं.

अगरचे बैठे हैं पहलू में वो रक़ीबों के,
हमारे दिल पे भी अब आरियां नहीं चलतीं.

तुम्हें भी होगा यकीं एक दिन मुहब्बत में,
"दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं "

हमारी बज़्म है 'रोशन' ज़मीर से अब तक,
हमारी बज़्म में चिंगारियां नहीं चलतीं.

_____________________________________________________________________________

Dayaram Methani

भलाई के लिये मक्कारियाँ नहीं चलतीं,
ये झूठ पे लदी लाचारियाँ नहीं चलतीं।

निराश क्यों हो गहन अंधकार से कोई,
सदा दुखों भरी पिचकारियाँ नहीं चलतीं।

सदा हरा भरा होगा वतन वही साहिब,
बहानों की जहां बीमारियाँ नहीं चलतीं।

ये जिन्दगी है जरा ध्यान से देखे कोई,
हवा के रुख में तरफ दारियाँ नहीं चलतीं।

उसूलो पर चलो तुम चाहे जितना ‘‘मेठानी’’
दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं।

_____________________________________________________________________________

vandana

ग़ज़ल या गीत हो अय्यारियाँ नहीं चलतीं
फ़कत ही लफ्जों की तहदारियाँ नहीं चलतीं

ये सोच कर ही बढ़ाना उधर कदम हमदम
जुनूं की राह में फुलवारियाँ नहीं चलतीं

न काम आये हैं घोड़े न हाथी आयेंगे
बिसाते-दहर पे मुख्तारियाँ नहीं चलतीं

कशीदे से लिखी जाती थी प्यारी तहरीरें
घरों में अब तो वो गुलकारियाँ नहीं चलतीं

सफ़र वही रहे आसां कि हमकदम जिनके
चलें तो कूच की तैयारियाँ नहीं चलतीं

रिवाजे-नौ तेरी आजमाइश में
चलन हो नेक तो दुश्वारियां नहीं चलतीं

तू को मैं मैं को तू होना बहुत जरूरी है
‘दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं’

_____________________________________________________________________________

umesh katara

अगर मगर से कभी यारियाँ नहीं चलती
बिना उसूल के दिलदारियाँ नहीं चलती
.
नसीब है ये मेरा सबसे ही अलग यारो
वग़रना साथ में बीमारियाँ नहीं चलती
.
रक़ीब ही थे बहुत तुम भी जा मिले उनसे
व़फा की राह में गद्दारियाँ नहीं चलती
.
न तुम झुको न झुकूँ मैं कभी मुहब्बत में
दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलती
.
बहाने बनाके निभाओगे इश्क़ तुम कैसे
जुनूँने इश्क़ में लाचारियाँ नहीं चलती

______________________________________________________________________________

शिज्जु "शकूर"

तिजारतों में कभी यारियाँ नहीं चलतीं
ग़मों से बचना कि ग़मख्वारियाँ नहीं चलतीं

नज़र झुकाइये शाइस्तगी से मेरे दोस्त
"दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं"

रहें गर आप सलामत तो ठीक है वरना
कभी हयात में बीमारियाँ नहीं चलतीं

वो दर्द भांप के बातों से मेरीे कहते हैं
मुहब्बतों में अदाकारियाँ नहीं चलतीं

बिखरता टूट के है ख़्वाहिशों में दिल अक्सर
जनाब ख़्वाब में बेदारियाँ नहीं चलतीं

उतार लाओ ज़मीं पर वो मेह्रो माह "शकूर"
बिना ख़याल कलमकारियाँ नहीं चलतीं

______________________________________________________________________________

नादिर ख़ान

अजब चलन है के अब यारियाँ नहीं चलतीं
नफा न हो तो, वफादारियाँ नहीं चलतीं

नये ज़माने की अय्यारियाँ नहीं चलतीं
हसद की बुग्ज़ की, बीमारियाँ नहीं चलतीं

बिला वजह की तरफदारियाँ नहीं चलतीं
अमल अगर न हो, तैय्यारियाँ नहीं चलतीं

निकल पड़े हैं सफर में वो हौसला लेकर
कि हौंसला हो तो, दुश्वारियाँ नहीं चलतीं

मज़ा कुछ और है दिल प्यार में लुटाने का
दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं

तुम्हें तलाश है जिसकी ख़ुदा अता कर दे
किसी का छीन के सरदारियाँ नहीं चलतीं

जो असलियत है, नज़र सबको आती है साहब
ये मुफ़लिसी की अदाकारियाँ नहीं चलतीं।

______________________________________________________________________________

संकलन में किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

राणा प्रताप सिंह

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Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय मंच संचालक महोदय,

सविनय निवेदन है निम्न रचना को ,पहली रचना  के स्थान पर प्रतिस्थापित कर दें, थोडा सा मात्रा में परिवर्तन किया है , तकलीफ के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ  !

सादर ,

हरि प्रकाश दुबे 

 

 

गुलाल रंग वो पिचकारियाँ नहीं चलतीं
कन्हाइ राधिका की यारियाँ नहीं चलतीं

 

न जाने खो गए कहाँ मिरे हरे जंगल 
बचे भी होते अगर आरियाँ नहीं चलतीं

 

मिठास गूजियों की और रस जलेबी का 
बजार की भी वो तैय्यारियाँ नहीं चलतीं

 

कहाँ वो खो गए है खेल आज बच्चों के 
हँसी खुशी की वो किलकारियाँ नहीं चलतीं

 

ये लोग साथ यहाँ मस्तियाँ नहीं करते 
गली गली की वो आवारियाँ नहीं चलतीं

 

जो भाभियों ने लिए रंग, दौड़ते देवर 
वो पाक प्यार की एतबारियाँ नहीं चलतीं

 

बना के झुण्ड वहाँ गिद्द उड़ रहे होंगे
ये खौफ़ खाके ही पनहारियाँ नहीं चलतीं

 

न शाम है न ग़ज़ल है न शोख़ महफ़िल है 
ग़ज़लगो की भी तो फनकारियाँ नहीं चलतीं

 

जनाब खेल है दिल से दिलों के मिलने का 
“दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं”

 

"मौलिक व अप्रकाशित”

 

आदरणीय हरिप्रकाश भाई जी, संशोधित ग़ज़ल में भी कुछ मिसरें बेबह्र है. ग़ज़ल के इन मिसरों को दुरुस्त कर लीजिये -

कन्हाइ राधिका की यारियाँ नहीं चलतीं

न जाने खो गए कहाँ मिरे हरे जंगल 

वो पाक प्यार की एतबारियाँ नहीं चलतीं

आदरणीय राणा सर, इतनी व्यस्तता के उपरांत भी  संकलन के श्रमसाध्य कार्य को इतने कम समय में पूर्ण कर संकलन की प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार
आयोजन की सफलता पर हार्दिक बधाई निवेदित है 

आदरणीय राणा प्रताप भाई , तमाम व्यस्तताओं के बावज़ूद संकलन बहुत शीघ्र  प्रस्तुत करने के लिये आपका आभार ॥

आदरणीय , मै ने इस प्रकार मिसरे की तकतीअ की थी ( अलिफ वस्ल के साथ ) अगर कुछ ग़लत हो तो बताने की कृपा करें

या की और ग़लती हो तो बताने की कृपा करें , ताकि मै सुधारने की कोशिश कर पाऊँ  ॥ सादर निवेदन ॥

मलक उल मौत का जब भी इशारा होता है  -- म लकु ल मौ 1212 , तका जब भी 1122 ,   इशारा हो 1212 ,   ता है  22

सर तक्ती कुछ यों होनी चाहिए
म ल कुल

आदरणीय राणा  सर व्यस्तता के बीच आपका हम सभी के लिए इतना समय निकाल लेना  वन्दनीय है 

कृपया इस  मिसरे  में इस प्रकार परिवर्तन कर दीजिये -

रिवाजे-नौ तेरी आजमाइश में..........   रिवाजे-नौ तेरी राहों की आजमाइश में
चलन हो नेक तो दुश्वारियां नहीं चलतीं

तू को मैं मैं को तू होना बहुत जरूरी है  ..... वैसे इस मिसरे के पढने में आ रही दिक्कत के बारे में आदरणीय मिथिलेश जी ने संकेत किया था पर कृपया आप भी थोड़ा विस्तार से बताइयेगा कि यहाँ मात्रा किन स्थानों पर गिराई नहीं जा सकती

इसे भी निम्न प्रकार बदलना चाहूंगी -

मिटा दें फासले अब तो सभी ये तू- मैं के 
‘दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं’

आयोजन की प्रस्तुतियों के संकलन और चिह्नित करने का कार्य सुचारू रूप से समय पर हुआ. यह ग़ज़लकारों और अभ्यासियों को अभ्यास के लिए सही मंच उपलब्ध कराता है.

शुभ-शुभ

संकलन हेतु बहुत- बहुत आभार आ० राणा प्रताप सिंह जी.ऐसे संकलन स्वतः ही कार्यशाला के सोल्व्ड चेप्टर की तरह हैं नव हस्ताक्षरों को  इससे बेहतर मार्दर्शन कहीं नहीं हो सकता.सभी ग़ज़लकारों को हार्दिक बधाई.होली की शुभ कामनाएं   

आदरणीय महोदय ,
मैंने महोत्सव के दूसरे दिन , शनिवार को निम्न लिखित मेल आपको पोस्ट की थी , क्या मैं जान सकता हूँ कि इसमें किये परिवर्तनों से बहर में कोई सकारात्मक सुधार नहीं होता है ?
भेजी गई मेल यह है , मैं पुनः भेज रहा हूँ,
Permalink Reply by Dr. Vijai Shanker on Saturday
Delete
आदरणीय ऐडमिन जी ,
तरही मुशायरा -५६ के सन्दर्भ में अपनी प्रविष्टि के विषय में यह निवेदन है कि बह्र की दृष्टि से यदि बिना कोई परिवर्तन किये , केवल शब्दों को आगे पीछे कर के कुछ परिवर्तन करूँ तो क्या बह्र की बात भी बन जाएगी। निवेदन है कि क्या यह परिवर्तन संभव है ? यदि हाँ, तो कृपया करना चाहें। अनुगृहीत होऊंगा।

यहां बनावटी अदाकारियाँ नहीं चलतीं
इश्क में ज्यादा होशियारियाँ नहीं चलतीं ॥

किसी जंग से कम नहीं होती है आशिकी
यहां बहाने औ लाचारियाँ नहीं चलतीं ||

इश्क गुलामी है क्या क्या करना पड़ जाए
समझ लो खाली वफ़ादारियाँ नहीं चलतीं ॥

दिलों का मामला है जहमत उठा लीजिये
यहां दिमागी कारगुजारियाँ नहीं चलतीं ॥

तलवार धार पे चल सकते हों तो चलिए
साथ फ़ौज हरदम फुलवारियां नहीं चलतीं ॥

झुकना सिखा देती है मोहब्बत दोस्तों
दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं ॥
▶ Reply
इस मुशायरे में बड़ी मजेदार ग़ज़लें पढ़ने को मिली ।खास कर आदरणीय योगराज प्रभाकर सर की उपस्थिति एक प्रस्तुति के रूप में मैंने पहली बार देखने को मिली । मैं स्वयं इंटरनेट की सहज पहुँच से दूर होने के कारण उपस्थित नही हो पाया । इस संग्रह के लिए आदरणीय राणा सर बधाई के पात्र हैं ।

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