For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो ग़ज़लें (डॉ. राकेश जोशी)

दो ग़ज़लें (डॉ. राकेश जोशी)

1
सब मिला है पर यहाँ सदभाव की बातें नहीं
गाँव का मौसम है लेकिन गाँव की बातें नहीं

आ, यहाँ पर बैठकर सुस्ता लें थोड़ी देर हम
धूप की बातें करेंगे, छाँव की बातें नहीं

इससे ज़्यादा क्या लिखें, इस दौर की नाकामियां
इस अँधेरे युग में भी बदलाव की बातें नहीं

दूर से ही ठीक था फैला समुंदर देखना
अब लहर के पास आकर नाव की बातें नहीं

बाद बरसों के मिले तो दोस्त बनकर हम मिलें
दर्द की बातें तो हों, पर घाव की बातें नहीं

आदमी की बात कर लें आदमी से आज हम
प्यार की बातें करें, बिख़राव की बातें नहीं

ये सफ़र अब ख़त्म होने को है, मेरे हमसफ़र
अब मिलन की बात हो, अलगाव की बातें नहीं

2
बंद सारी खिड़कियाँ हैं, सो रही हैं
नींद में गुम बत्तियाँ हैं, सो रही हैं

तुम इन्हें परियों के सपने सौंप दो
इस तरफ कुछ बस्तियाँ हैं, सो रही हैं

किसने पतझड़ को बुलाया है इधर
पेड़ पर कुछ पत्तियाँ हैं, सो रही हैं

इक सितारा घिर गया तूफ़ान में
और जितनी कश्तियाँ हैं, सो रही हैं

याद तुमको कर रहा हूँ इस समय
क्योंकि जो मजबूरियाँ हैं, सो रही हैं

पास मेरे चंद ख़त हैं, साथ ही
ढेर सारी तितलियाँ हैं, सो रही हैं

मैं तुम्हारे ख़्वाब में गुम हो गया
बीच में जो दूरियाँ हैं, सो रही हैं

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 635

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Rakesh Joshi on October 19, 2014 at 6:05pm
आदरणीय खुर्शीद जी,
आपको मेरी ग़ज़लें पसंद आईं. मैं इसके लिए आपका आभारी हूँ.
आपकी टिप्पणी के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी
Comment by khursheed khairadi on October 13, 2014 at 10:26pm

तुम इन्हें परियों के सपने सौंप दो
इस तरफ कुछ बस्तियाँ हैं, सो रही हैं

आदरणीय राकेश जोशी जी अच्छे अशहार हुये हैं ,दिलीदाद कबूल फरमाएं |सादर 

Comment by Dr. Rakesh Joshi on October 13, 2014 at 4:52pm

आदरणीय संदेश नायक जी,
आपको मेरी ग़ज़लें पसंद आईं. मैं इसके लिए आपका आभारी हूँ.
आपकी टिप्पणी के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 13, 2014 at 9:11am

माननीय जोशी जी,

बहुत गहरी अभिव्यक्ति, गहन चिंतन दृष्टिगोचर होता है आपकी रचना में । 

बधाइयाँ एवं अभिनन्दन ।  

Comment by Dr. Rakesh Joshi on October 13, 2014 at 8:24am

आदरणीय डॉo विजय शंकर जी,
आपको मेरी ग़ज़लें पसंद आईं. मैं इसके लिए आपका आभारी हूँ.
आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी

Comment by somesh kumar on October 13, 2014 at 7:09am

बेहद सुंदर प्रस्तुति 

बधाई स्वीकार करें आदर्णीय

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 12, 2014 at 8:05pm

इससे ज़्यादा क्या लिखें, इस दौर की नाकामियां
इस अँधेरे युग में भी बदलाव की बातें नहीं।।
बहुत सुन्दर। दोनों ही गज़लें बहुत सुन्दर हैं , आदरणीय डॉo राकेश जोशी जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service