वसन्तिलका वर्णिक छंद
ऽ ऽ । ऽ । । ।ऽ । । ऽ । ऽ ऽ
हे वक्रतुण्ड़ गण नायक विघ्नहारी।
हे पार्वती तनय भक्तन हीतकारी।।
हे वर्ण अक्षर रूपा प्रभु बुद्धि दाता ।
हे वेद लेखक महे चित ज्ञान दाता ।।
गीतिका मात्रिकछंद
ऽ। ऽ ऽ ऽ। ऽ ऽ, ऽ। ऽ ऽ ऽ। ऽ
दीजिये ज्ञान मुझ को, हे गजानन ज्ञान निधि ।
मुर्ख हूॅं मैं तो प्रभोजी, प्रार्थना हो कौन विधि ।।
विघ्न सारे जो हमारे, दूर देवा कीजिये ।
दोश सारे मन समाये, स्वच्छ मन कर दीजिये ।।
....................................
मौलिक अप्रकाशित
Tags:
अति सुन्दर ,अतिसुन्दर हार्दिक बधाई इस अनुपम प्रस्तुति के लिए जय गजानन.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |