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आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,

सादर अभिवादन.

 

ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 41 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.

पिछले दो आयोजनों से पाँच-पाँच कर दस छन्दों पर पुनरभ्यास किया गया. उन सभी दसों छन्दों पर आयोजन हो चुके थे. इस आयोजन से पुनः हम नये छन्दों पर काम करेंगे.

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ

19 सितम्बर 2014 से 20 सितम्बर 2014 दिन शुक्रवार  से दिन शनिवार

 

 

इस बार के आयोजन के लिए जिस छन्द का चयन किया गया है, वह है –  भुजंगप्रयात छन्द

एक बार में अधिक-से-अधिक पाँच भुजंगप्रयात छन्द प्रस्तुत किये जा सकते है. ऐसा न होने की दशा में प्रतिभागियों की प्रविष्टियाँ ओबीओ प्रबंधन द्वारा हटा दी जायेंगीं.

[प्रयुक्त चित्र अंतरजाल (Internet) के सौजन्य से प्राप्त हुआ है.]

भुजंगप्रयात छन्द के आधारभूत नियमों को जानने हेतु यहीं क्लिक करें.

आयोजन सम्बन्धी नोट :

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 19 सितम्बर 2014 से 20 सितम्बर 2014 यानि दो दिनों के लिए रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा. केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

विशेष :

यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

अति आवश्यक सूचना :

  • आयोजन की अवधि के दौरान सदस्यगण अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक के हिसाब से पोस्ट कर सकेंगे. ध्यान रहे प्रति दिन एक प्रविष्टि, न कि एक ही दिन में दो प्रविष्टियाँ.
  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
  • आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  • इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  • रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  • रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

महनीया  छाया जी

आपका हृदय से आभारी हूँ i सादर i

आदरणीय डॉ.  गोपाल नारायण जी .अद्भुत रचना के लिए आभार..

महेश्वरी जी

आपका आभारी हूँ i  सादर i

आदरणीय गोपाल  भईजी

गौ माता का सुंदर  गुणगान  किया है  और उसके प्रति हमारी भावनाओं का भी ध्यान  रखा  है आपने,  प्रारंभ करते ही पंक्ति दर पंक्ति भाव उच्च होते गये । हृदय से बधाई। 

आदरणीय  भुजंगप्रयात छंद के नियमों  के पालन में कहीं- कहीं थोड़ी चूक प्रतीत होती है.........   122 के पालन में और पहली पंक्ति के साथ दूसरे और तीसरे के साथ चौथी पंक्ति की तुकांतता में ।

सादर 

 

आदरणीय अखिलेश जी

आपके प्रोत्साहन का आभारी हूँ i सुवदना में त्रुटि हुयी है पर   तुकांतता मैंने दुसरे और चौथे पद की रखी है  i इसमें मुझे कमी नहीं दिख रही  i कृपया आप मार्ग निर्देश करना चाहें i  सादर i

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहुत सुन्दर छंद रचना हुई है , आपको दिली बधाइयाँ |

मित्र

आपका बहुत बहुत आभार iसादर i

आदरनीय  मंच संचालक जी से अनुरोध है कि  'सुवद्ना'   को 'सुसौम्या'  करने की कृपा करे i सादर i

सुश्यामा सुकर्णा सुवदना सुशीला

अहो भव्य है शांकरी दिव्य लीला I

अजाना  अयाना सभी  से परे है

अभी  लोक-संसार  सारा सजीला I

आदरणीय गोपालनारायण जी पूर्ववत आपकी रचना अलौकिक हुई है |कोटि अभिनन्दन ,आपसे हमें काफ़ी कुछ सीखने को भी मिल रहा है |हार्दिक बधाई |सादर आभार 

//

सुश्यामा सुकर्णा सुवदना सुशीला

अहो भव्य है शांकरी दिव्य लीला I

अजाना  अयाना सभी  से परे है

अभी  लोक-संसार  सारा सजीला I//

बहुत सुन्दर, मन मुग्ध है इस बंद पर, अच्छी प्रस्तुति आदरणीय गोपाल नारायण जी। बधाई प्रेषित है।

आदरणीय डॉ.गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, शब्द और भाव की उत्कृष्टता मन को मोह रही है. बधाइयाँ........

12.10 AM , 20-9-2014 को पोस्ट

यहाँ आ गई भूल से  गाय माता

रहा है सदा नेह का  पुण्य नाता I

निभाता उसी दिव्य संस्कार को है

शुभा धेनु को बाल माथा झुकाता I

 

बड़े प्यार से वक्त्र को है सहेजा

अभी बाल है हाँ बड़ा है कलेजा I

पडी है नहीं पाप की मौन छाया

इसे प्रेरणा ने  यहाँ आज भेजा I

 

जरा देखिये धेनु  की भाव धारा

किये नेत्र  में बंद  संसार सारा I

तभी पूजते है यहाँ लोग श्यामा

मिलेगा कहाँ  आह ऐसा नजारा I               

 

इसे पालतू  तो  सभी  जानते हैं

अहो आर्य  माता इसे  मानते हैं I

धरा रूप लेती  कभी  धेनु जैसा  

उन्हें ज्ञात जो वेद  को छानते हैं I

 

जरा  भी नहीं  प्रेम को आंकते जो

वही  कीश  है दूर  से झांकते जो I 

डराया किया  मात्र खो-खो  हमेशा

वही लोग हैं  धूल को  फांकते जो I  

 

[मौलिक व् अप्रकाशित]

 

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