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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" गोल्डन जुबली अंक (Now Closed)

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के "गोल्डन जुबली अंक" अर्थात 50 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. इस बार का मिसरा -ए-तरह हिन्दुस्तान के मशहूर शायर जनाब ज़फर गोरखपुरी साहब की एक बहुत ही मकबूल ग़ज़ल से लिया गया है | पेश है मिसरा-ए-तरह.....

 

"शम्अ भी जलती रही परवाना जल जाने के बाद "

२१२२ २१२२ २१२२ २१२ १

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन 

(बह्रे रमल मुसम्मन् महजूफ)

रदीफ़ :- के बाद 
काफिया :- आने  (जाने, पाने, परवाने, मस्ताने आदि )

विशेष : मिसरे की ताकतीअ में अंत में एक मात्रा ज्यादा है जो ली गई छूट के अंतर्गत आती है. अशआर के पहले मिसरे बिना इस मात्रा को बढाए भी कहे जा सकते हैं.

मुशायरे की अवधि केवल दो  तीन दिन (केवल इसी अंक हेतु) है -

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 29 अगस्त दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और

दिनांक 31 अगस्त दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी
    (इस कंडिका में उल्लेखित शर्त को केवल इस गोल्डन जुबली अंक हेतु शिथिल कर असीमित ग़ज़ल कहने की अनुमति दी जाती है)
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए.
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें. बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा.
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है.
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएँ. ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी.
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • आयोजन के दौरान संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य नहीं होगा. अत: सदस्यगण  आयोजन की रचनाओं का संकलन आ जाने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें.

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 29 अगस्त दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

जिस्म की इस क़ैद से जब रूह ये होगी रिहा,
आसमां सातो नपेंगे दम निकल जाने के बाद

बहुत खूब ....आ०  भाई नीलेश भाई , इस शेर और बेहतरीन  ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

इस ग़ज़ल के भी अशआर बहुत शानदार हुए हैं...

जो हवाओं की तरफ़ थे आग भड़काने के बाद,
अम्न की करते हैं बाते, राख़ उड़ जाने के बाद.
.
इक चमकती रूह की लेकर तलब दाख़िल हुए,
गंगा से आए निकल बस जिस्म चमकाने के बाद.
.
जिस्म की इस क़ैद से जब रूह ये होगी रिहा,
आसमां सातो नपेंगे दम निकल जाने के बाद

इन अशआरों कर ख़ास बधाई स्वीकार कीजिये .

हर शेर पर अलग-अलग दाद दे रहा हँ, आदरणीय नीलेश जी.

ग़ज़ब की कहन के साथ ग़ज़ल आयी है.

अलबत्ता गिरह के उला में में  लिखे जाने से रह गया है. आप जानते ही होंगे.

इस ग़ज़ल केलिए एक दफ़े फिर से वाह वाह वाह !

सादर

बहुत खूब, ये और मज़बूत है। 

वहशते दिल तू मुझे चाहे न चाहे और बात
मैंने चाहा है तुझे इस उम्र में आने के बाद ...... बड़ी ही खूबसूरत गज़ल उपलब्ध कराई आपने पढने के लिए बधाई कबूल फरमाएं सादर !

गलत जगह पर सही दाद आयी है, आदरणीया छाया जी.

जल गया बेख़ौफ़ होकर हुस्न सहलाने के बाद I
मिट गया लब चूम कर कुछ देर मुस्काने के बाद II१II
--
बे-अदब आशिक जलाने हैं फ़क़त ये सोच के I
"शमअ भी जलती रही परवाना जल जाने के बाद "II२II
--
शमअ ने मजनूँ  मिटाये सैकड़ों जब इस तरह I
बन गईं लाखों ग़ज़ल बेदर्द अफ़साने के बाद II३II
--
हर तरह बे-आबरू होता रहा ता-उम्र जो I
बढ़ गई इज़्ज़त महज़ दिलदार कहलाने के बाद II४II
--
दर्द मैं खुद फड़फड़ाती है शमअ पर क्या करे I
पोंछती है अपने आंसू छुप के लहराने के बाद II५II
--
हैं फ़क़त ररुस्वाइयाँ हीं क्यों नसीबे इश्क मैं I
कुछ नहीं हासिल कभी महबूब ठुकराने के बाद II६II
--
रात थक कर कह रही थी अब बुझा भी दो मुझे I
मैं "अमित" कब तक जलूँगी अपने परवाने के बाद II७II
--
"मौलिक व अप्रकाशित"
~~
~~
"इस तरह से ये तरह भी हो गई पूरी तरह I
और किस्सा लिख दिया हर राज़ दफ़नाने के बाद II"

"मौलिक व अप्रकाशित"

बढ़िया ग़ज़ल हुई है भाई अमित जी, बधाई स्वीकारें।

Bahut Bahut dhanyabaad sir :)

रात थक कर कह रही थी अब बुझा भी दो मुझे I
मैं "अमित" कब तक जलूँगी अपने परवाने के बाद II७II...बढ़िया  है!!

Dhanyabaad Avinaas ji hoslafjaai ke lie

वाह ! बहुत खूब गजल कही है भाई अमित कुमार जी और गिरह के शेर का तो क्या कहना. बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

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