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गजल- रंग पानी सा....
बह्र - 2122, 2122, 2122


नारि ही जब शक्ति की दुर्गा-सती है।
आज कल हालात की मारी हुयी है।।


काल बन भस्मासुरों को भस्म कर दें,
निर्भया बन वह सड़क पर लुट रही है।


विष्णु-शिव-ब्रह्मा हुआ है आदमी अब,
सृ-िष्ट - नारी की कहानी त्रासदी है।


नित गरीबी आग में पकती रही पर,
भूख, बच्चों की पढायी सालती है।


रक्त नर का पी कपाली बन लड़ी जो,
खून में लथपथ शिवानी सो रही है।


द्राैपदी-सीता-अहिल्या चुप रही कब ?
क्रान्ति जन-जन में यहॉं पलने लगी है।


न्याय अन्धा, तन्त्र बहरा, मूक जन का-
रंग पानी सा, मगर पानी नही है।


के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 12:36am

बहुत अच्छी कोशिश के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें, भाई केवल प्रसाद जी. 

ई  के काफ़िये के साथ ईं  का काफ़िया दोषपूर्ण माना जायेगा.

आप सतत रचनाशील रहें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 1, 2014 at 8:06pm

आ0 भण्डारी भाई जी,  प्रस्तुत गजल पर आपके उत्साहवर्धन एवं उचित मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 1, 2014 at 8:06pm

आ0 गोपाल भाई जी,  प्रस्तुत गजल पर आपके उत्साहवर्धन एवं उचित मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 1, 2014 at 8:03pm

आ0 कल्पना जी,  प्रस्तुत गजल पर आपके उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 1, 2014 at 7:58pm

आ0 विजय शंकर भाई जी,   उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 29, 2014 at 11:04pm

आदरणीय केवल भाई , खूबसूरत ग़ज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ !

रक्त नर का पी कपाली बन लड़ी जो,
खून में लथपथ शिवानी सो रही है।   लाजवाब शेर , बधाई ||

मतले को शायद ऐसा करना जादा अच्छा रहेगा -- आज क्यों हालात की मारी हुयी है ,  अभी बात साफ़ नहीं हो रही है | सोच के देखिएगा |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 29, 2014 at 11:44am

रक्त नर का पी कपाली बन लड़ी जो,
खून में लथपथ शिवानी सो रही है।

वाह------ अति सुन्दर i  क्या बात है केवल जी i

Comment by kalpna mishra bajpai on July 29, 2014 at 10:23am

रक्त नर का पी कपाली बन लड़ी जो,
खून में लथपथ शिवानी सो रही है।..............................आदरणीय केवल सर बहुत सुंदर गजल कही है आपने ॥बहुत बधाई /सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 28, 2014 at 11:00pm
न्याय अन्धा, तन्त्र बहरा, मूक जन का-
रंग पानी सा, मगर पानी नही है।
बात है , बधाई।

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